________________
-
४]
प्रथम अध्याय भय मैथुन और परिग्रह रूप चार प्रकारका ज्वर उत्पन्न होता है, जिस प्रकार ज्वरसे मूर्छा ( वेहोशी ) और संताप होता है उसी तरह इन संज्ञाओंसे भी मूर्छा (ममत्व) और संताप होता है । इसप्रकारके संज्ञारूप ज्वरसे जो दुखी हैं और इसलिये जो--
एगो मे सासदो आदा णाणदंसण लक्खणो । ___ सेसा मे वाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा ॥
अर्थात्--"मेरा यह आत्मा ज्ञानदर्शनस्वरूप, नित्य तथा एक है और शेष रागद्वेष आदि कर्म के संयोगसे होनेवाले | | बाह्यभाव अर्थात् विभाव हैं,"इस प्रकारके आत्मज्ञानको भूल गये हैं तथा भोजन वस्त्र स्त्री आदि विषयोंमें सदा लीन रहते हैं, 'मेरा आत्मा स्वपर प्रकाशक है' इस बातको जो भूले हुये हैं वे सागार वा गृहस्थ कहलाते हैं ॥२॥ आगे-सागारका लक्षण फिर भी दूसरीतरहसे कहते हैं
अनाद्याविद्याऽनुस्यूतां ग्रंथसंज्ञामपासितुं ।
अपारयंतः सागाराः प्रायो विषयमूर्छिताः ॥ ३ ॥
अर्थ-जिसप्रकार बीज से वृक्ष और वृक्षसे बीज उत्पन्न होता है उसीप्रकार अनादिकालसे चले आये अज्ञानसे जो परिग्रहसंज्ञा उत्पन्न होती है अर्थात् परिग्रहसे अज्ञान और अज्ञानसे परिग्रह रूपी संज्ञा उत्पन्न होती है इसप्रकारकी अनादि कालसे विद्यमान परिग्रह रूपी संज्ञाको जो छोड़ नहीं
नाम