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॥ श्री वीतरागाय नमः ॥ श्रीमत्पंडितप्रवर आशाधर विरचित
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सागारधर्मामृत
प्रथम अध्याय
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संस्कृत टीकाका मंगलाचरण । श्रीवर्द्धमानमानम्य मंदबुद्धिप्रबुद्धये धर्मामृतोक्तसागारधर्मटीका करोम्यहं । समर्थनादि यन्नात्र ब्रुवे व्यासभयात्कचित्
तज्ज्ञानदीपिकाख्यैतत्पंजिकायां विलोक्यतां ॥ ____ अर्थ - मैं श्रीवर्द्धमान स्वामीको नमस्कार कर अल्पबुद्धियों को समझानेकेलिये धर्मामृतमें कहे हुये सागारधर्मामृतकी टीका करता हूं। इसमें विस्तार होजानेके डरसे समर्थन आदि जो कुछ नहीं कहागया है वह इसकी ज्ञानदीपिकापंजिका नामकी टीकामें देख लेना चाहिये । आगे-धर्मामृतके चौथे अध्यायमें
सुदृग्बोधो गलवृत्तमोहो विषयनिःस्पृहः । हिंसादोर्विरतः कात्या॑द्यतिः स्याच्छावकोंऽशतः