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भव्य कृति सृजित करवाई। अाज अनगढ़ कृतिको देखकर भी हमारे हृदयमें इसलिए क्षोभ उत्पन्न नहीं होता कि हममें यह दृष्टि ही कहाँ जो दीर्घकालव्यापी साधनाके श्रमका उचित मूल्यांकन कर सके। पुरातन कलाकृतिको देखकर तात्कालिक नैतिक चरित्रका और पूर्व परम्पराका कलामें जो विकास हुया है, उस पर विचार करनेवाले हैं कितने ? भावनाको भावना ही हृदयंगम कर सकती है न कि शुष्क विचार । पुरातत्त्वान्वेषण
खण्डहर दर्शकका मानसिक स्तर अध्ययनकी दृष्टि से बहुत ही उच्च कोटिका होना चाहिए। तभी वह वहाँ बिखरे हुए सांस्कृतिक वैभवकी झांकी पा सकेगा। पुरातत्त्वान्वेषणमें अभिरुचि रखनेवाले व्यक्तिका इन निम्नलिखित विषयोंका गम्भीर अध्ययन व मनन होना चाहिए:
खण्डहरोंसे केवल शिल्पावशेष ही प्राप्त होते हैं ऐसी बात नहीं। कभी ताम्र व शिलोत्कीर्ण लिपियाँ, मुद्राएँ, प्राचीन शस्त्रास्त्र, आभूषण, भाजन तो कभी ग्रन्थस्थ वाङ मय भी निकल पड़ता है । भूगर्भसे किसी भी प्रकारकी वस्तु निकलती है उसकी रक्षाके प्रयत्न, प्रात साधन-सामग्रीके अाधारपर ऐतिहासिक व सांस्कृतिक तत्त्वोंकी गवेषणा एवं कला व सभ्यताके क्रमिक विकासको मौलिक परम्पराओंका व्यवस्थित अध्ययन करना आदि समस्त कर्त्तव्योंका अन्तर्भाव पुरातत्त्वान्वेषणमें होता है ।
१. शिल्पस्थापत्य-प्राकालीन इमारतोंकी निर्माण शैली और उनमें विकसित कलाका अभ्यास करना और प्राचीन शिल्प-स्थापत्यपर प्रकाश डालनेवाले वास्तु-विषयक साहित्यिक ग्रन्थोंका तलस्पर्शी अध्ययन व मनन करना । अध्ययन करते समय इस बातका भलीभांति ध्यान रखना चाहिए कि ग्रन्थस्थ शिल्प-परम्परा, कला द्वारा पत्थर, काष्ठ व अन्य धातु पर कहाँतक सफलतापूर्वक अवतरित हो सकी है। एवं उसमें कलाकारोंने कौन-कौनसे सामयिक परिवर्तन किये हैं। ऐसे शिल्प प्रतीकोंसे संस्कृति और सभ्यताके
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