Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ :प्रथम खण्ड
कर्मशील योगी
साध्वी श्री लब्धिश्री
सुराणाजी का व्यक्तित्व वास्तव में प्रेरणास्पद व्यक्तित्व विकास दृष्टिगत नहीं होता है। उसका कारण क्या है ? है और उन्होंने इस व्यक्तित्व का निर्माण किया है अपने ही एक ही राज नजर आता है-जीवनदानी कार्यकर्ताओं की कार्यबल के आधार पर, निरन्तर श्रमशीलता के आधार पर, कमी । बहुत बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाते हैं। लेकिन उनको आन्तरिक कर्तव्यनिष्ठा के आधार पर । नाम रोशन करने क्रियान्विति देने वाले विरले ही होते हैं, इसीलिए वे बने के लिए कार्य करने वाले बहुत मिलेंगे पर बिना किसी नाम बनाये प्लान डायरी में ही रह जाते हैं, संस्थानों का की भूख से, बिना किसी स्वार्थ के प्रलोभन से काम करने विकास अवरुद्ध हो जाता है। लेकिन आज श्री तेरापंथ वाले निःस्वार्थ सेवा प्रदान करने वाले सुराणाजी जैसे विरले मानव हितकारी संघ जो सक्रिय दिखाई दे रहा है और ही मिलेंगे। वास्तव में आप एक कर्मशील योगी हैं। महाविद्यालय का जो प्रारूप दृष्टिगत होता है उनमें महान् आपकी सतत कर्मशीलता का ही प्रतिफल है श्री तेरापंथ योग रहा श्री सुराणाजी का। किसी ने बहुत सुन्दर मानव हितकारी संघ । जिसको प्राणप्रिय समझकर तन की कहा हैपरवाह न करते हुए अपने अमुल्य श्रम सीकरों से सतत बातों से कुछ नहीं होता काम करने वाले बढ़ते हैं, सिंचन दिया और इस फुलवारी को पुष्पित, फलित और / खड़े रहने से कुछ नहीं आगे चलने वाले शिखर चढ़ते हैं। विकसित किया।
नाम का यह संक्रामक रोग बहुतों को ग्रसित कर बैठा, हम देखते हैं अनेक संस्थानों को, पर उनका सम्यक् विरले ही बचे जो अरमानों को सही ढाँचे में मंढ़ते हैं ।
00 अजब गजब रा श्रावक
मुनि श्री अगरचन्द
करीब सात बरस पहेलां री बात है एक दिन पाछली सब दुकानदारी छोड़ कर एक धुन राणावास में विद्यालय रात संतांरी सभा में आचार्य श्री फरमायो के अगरचन्दजी के माध्यम स्यु बच्चा में धार्मिक संस्कार फैलावा रो काम थारे कांठा रा संत किता है, जद म्हें कह्यो आचार्यप्रवर कर रह्या है सो बोत ही सराहणीय हैं। साथ में उणारी संत तो है जका है ही पिण कांठे में श्रावक केसरीमलजी धर्मपली सुन्दरबाई जो के सैकड़ों तोला सोनो पहरणे वाला सुराणा बोत काम कर रह्या है तब आचार्य श्री फुरमायो व बूंघट निकालने वाला हा सब त्यागर सादगीरे साथे के केसरीमलजी तो एक अजब गजब रा श्रावक है। रेवण लाग गया। केसरीमलजी री सादगी त्याग आज केसरीमलजी सुराणा जिसा श्रावक बोत थोड़ा मिले है। समाज रे वास्ते अनुकरणीय है। वास्तव में केसरीमलजी सुराणा करीब ३५ वरसां स्यु आपरी
00 संयम को साकार मूर्ति
- साध्वी श्री राजीमती श्री केसरीमलजी सुराणा का मन और शरीर दोनों वृत्तियाँ रचनात्मक हो गई है। भौतिकवाद की चकाचौंध स्वस्थ हैं । इसका मुख्य कारण उनका संयममय जीवन है। उन्हें प्रभावित नहीं कर पाई, कोई सा प्रलोभन उन्हें झुका खान-पान का संयम, वेशभूषा का संयम, धन का संयम, नहीं पाया, किसी तरह का कष्ट उन्हें पराजित नहीं कर वाणी का संयम और व्यवहार में संयम, सर्वत्र उनका संयम सका। वे तेरापंथ धर्मसंघ के महानतम श्रावक हैं। दर्शनीय है । इस संयममय दैनिक-चर्या के फलस्वरूप उनकी
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