Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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आशीर्वचन
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अपने आपको प्रकाशित किया है। उनका जीवन __ सागरमलजी का बम्बई पद-यात्रा के बीच राणावास पधावर्तमान पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत है। वे जितने रना हुआ। मन में लम्बे समय से राणावास देखने की संयमी हैं उससे कहीं अधिक मितव्ययी भी। उन्होंने इच्छा थी, वह आज साकार हो गई। मैंने वहाँ देखा भौतिक सम्पदाओं को ठुकराया है। वे ऐसे त्यागी जिस राणावास की गरिमा, हम दूर से सुन रहे थे, हैं जो सब कुछ होते हुए भी उसमें लुभाए नहीं, उसमें उससे कहीं अधिक देखने को मिली। विद्या के साथ उन्होंने अपने आप को फंसाया नहीं। लगता है आचारांग अध्यात्म को जोड़कर माननीय श्री सुराणाजी ने देश की का सूक्त 'बई पि लधुन निहे परिगहाओ अप्पाणं अव- एक बहुत बड़ी कमी को पूरा करने का प्रयत्न किया है। सक्किज्जा' उनके जीवन में मूर्त हो उठा है। मनुष्य आव- विद्याथा
ज्य आव. विद्यार्थी समाज में जितनी उच्छृखलता और अनुशासनश्यकता से अधिक संग्रह करे जितनी उसकी अपेक्षा है। हीनता पनप रही है, देश के कर्णधारों के सामने प्रश्न-चिह्न क्योंकि जितनी-जितनी आवश्यकताएँ बढ़ती हैं उतना ही उपास्थत कर दिया है। मुझे यह जानकर आर भा प्रसन्नता असन्तोष बढ़ता है। असन्तोष व्यक्ति को जीते जी जलाता हुई कि पैंतीस वर्षों के इतिहास में वहाँ एक बार भी है। मरने पर तो सब ही को जलाया जाता है पर हड़ताल नहीं हुई। सचमुच यह सारा श्रेय सुराणाजी को असन्तोषी अपने आपको प्रतिक्षण जलाता रहता है। परि- जाता है, जिन्होंने अपने अथक परिश्रम से विद्यार्थी समाज ग्रही व्यक्ति को अनेक चिन्ताएँ रहती हैं। शायद ही कोई को नया मोड़ दिया है। आज वहाँ हजारों छात्र ज्ञानार्जन दिन ऐसा जाए जब वह शान्ति से खा सके, सुख से सो में लगे हैं। सके और आराम से बैठ सके। केसरीमलजी सुराणा ने राणावास में उनकी कर्मशक्ति उजागर है। देखने पर अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण किया और एक ऐसा आदर्श अनेक प्रश्न मन में उत्पन्न होने लगे- क्या एक व्यक्ति प्रस्तुत किया है कि वर्तमान मॅहगाई के युग में भी सौ इतना महत्त्व का काम कर सकता है, क्या एक व्यक्ति रुपयों में अपना काम आसानी से चला लेते हैं । वे सात्त्विक, नब्बे लाख रुपए एकत्रित कर सकता है, पर यथार्थ को सरल और निरभिमान व्यक्तित्व के धनी हैं।
कैसे झुठलाया जा सकता है। सचमुच वे कर्मवीर हैं। शिक्षा वह संजीवनी बूटी है जो चलती-फिरती लाशों भगवान महावीर ने कहा है-'जे कम्मे सूरा ते धम्मे में भी नवचेतना का प्राण स्पन्दन करती है। आपकी यह दृढ़ सूरा।' जो कर्म में शूर होता है वही धर्म में। सुराणाजी धारणा है कि जब तक शिक्षा के साथ-साथ चैतन्य स्फूर्त कर्म के क्षेत्र में ही शूरवीर नहीं हैं वे उससे कहीं अधिक नहीं किया जायेगा तब तक शिक्षा, शिक्षा नहीं होगी। धर्म के क्षेत्र में । एक दिन में १६ सामायिक करना, १७॥ ऐसी शिक्षा, बिना आत्मा का शरीर है । आपने इतिहास को घण्टा मौन रखना उनके आध्यात्मिक भाव का परिचायक पलटा है, युगबोध को नए-नए आयामों से भरा है, इसका है। इतना सब कुछ करते हुए बचे समय में इतना कार्य जीता-जागता उदाहरण है-विद्याभूमि राणावास । किया है। उनकी कार्यजा शक्ति पर हर किसी को ईर्ष्या हो तो __ मैंने राणावास के बारे में बहुत सुन रखा था पर मन यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। सुराणाजी की मिलनसारिता, में विश्वास नहीं होता था। विश्वास हो भी कैसे, जब मैंने निष्कपट व्यवहार, रौबीला स्वभाव सहज ही अपनी ओर शान्तिनिकेतन को देख लिया, वनस्थली विद्यापीठ भी, प्रभावित कर लेता है। मैंने एक दिन में पाया सहज पिलानी इंस्टीट्यूट और भी देश के उन विद्यालयों, महा- साधुत्व एवं श्रावकत्व का अद्भुत सम्मिश्रण । विद्यालयों और विश्वविद्यालयों को देखा, फिर राणावास अध्यात्म के क्षेत्र में वे प्रगति करते रहें, इसी मंगलमें इससे अधिक और क्या होगा ? ६ मार्च, ७६ को मुनिश्री भाव के साथ ।
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