Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
.४६
कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
-
-
-
-
-
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
-.
कमल से निस्पह
- साध्वी श्री इन्दुजी, (लाडनू) श्री केसरीमलजी सुराणा साधना की साकार मूर्ति अनुकरणीय है। आप संयम और साधना की दीपिका हैं । साधना का प्रतिबिम्ब आपके जीवन-दर्पण में प्रति- प्रज्वलित कर कर्मरूप सधन तप के शिलाखण्डों को चीरने बिम्बित होता हुआ देखा जा सकता है । 'संयमः खलु जीव- के सत्कार्य में सतत जागरूक रहकर जीवन का सार खींच नम्' का उद्घोष आपके जीवन में काफी अंशों में उतरा हुआ रहे हैं, जैसा कि कवि ने कितना मार्मिक कहा हैहै। वस्त्र व अर्थ का स्वल्पीकरण साधनारत जीवन के जिन्दगी न केवल जीने का बहाना, ऐसे पहलू हैं जो जीवन पक्ष को अत्यधिक उजागर करते जिन्दगी न केवल सांसों का खजाना । है। गृहस्थ-जीवन में साधु का-सा जीवन जीना वास्तव में
वह सिन्दूर है पूर्व दिशा का, सरोवर में खिले कमल की निस्पृहता का ज्वलन्त उदाहरण
उसका काम है सूरज उगाना ॥ है । श्रावकत्व व साधुत्व का ऐसा सम्मिश्रण सबके लिए
कलयग के शिवशंकर
0 साध्वी श्री ध्रु वरेखाजी युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी व उनके अनुयायी साधु- वीर पुरुष के पुरुषार्थ के आगे स्वयमेव निरस्त हो जाती साध्वियाँ तो स्व-परहित कल्याणार्थ कार्यरत हैं ही परन्तु है। उनका पथ निर्विघ्न व निर्विवाद हो जाता है। कर्मवीर आचार्य तुलसी का श्रावक समाज भी अपनी कार्यकुशलता काका साहब का लक्ष्य बन गया 'बच्चे अध्ययन के साथसे जन-जन का आदरणीय बन गया है।
साथ सुसंस्कारी व सदाचारी बनें।' उनके चरण बढ़ चले काका साहब श्रावक श्री केसरीमलजी सुराणा भी एक अपने गन्तव्य की ओरहैं, जिनकी कर्त त्व-शक्ति का लाभ आज तेरापंथ को ही मनुज दुग्ध से दनुज रक्त से, देव सुधा से जीते हैं। नहीं अपितु जैन-अजैन सभी को मिल रहा है।
किन्तु हलाहल भव सागर का, शिवशंकर ही पीते हैं । बहादुर कब किसी का आसरा अहसान लेते हैं। काकासा ने अशिक्षा का हलाहल पीकर युवा पीढ़ी को उसी को कर गुजरते हैं जो दिल में ठान लेते हैं। शिक्षा का अमृत पान कराया और वे कलयुग के शिवशंकर
कर्मवीर पुरुष का जो लक्ष्य बन जाता है उस पर बन गये। निर्भीक होकर बढ़ने लगता है। बाधाएँ व आपत्तियाँ कर्म
। जे कम्मे सूरा ते धम्मे सूरा
0 मुनि श्री विनयकुमार 'आलोक' मनुष्य जीवन तक पहुँचने के लिए इस जीव ने कितने करने वाले हैं कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा । वे कर्मपड़ाव किये होंगे? आना और जाना यह क्रम अविरल गति योगी हैं, कर्मठ सेवाभावी है और उनका जीवन त्याग और से चल रहा है। आने व जाने के बीच में जो समय है संयम की सच्ची मिसाल पेश करता है। उसका सदुपयोग बहुत कम व्यक्ति कर पाते हैं। भगवान् संसार में जन्म लेना एक बात है और उसमें से सार महावीर ने एक सूक्त में कहा-'समयं गोयम मा पमायए' खींचना अलग बात है। अध्यात्म-साधक केसरीमलजी समय मात्र भी प्रमाद मत करो। इस सूक्त को चरितार्थ दूसरी कोटि के पुरुषों में है। उन्होंने साधना की ज्योति से
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org