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अध्याय-२
संस्कारों से सम्बन्धित साहित्य
हिन्दू - परम्परा का साहित्य
हिन्दू - परम्परा के गृह्यसूत्रों में सर्वप्रथम संस्कारों का उल्लेख हुआ है, यद्यपि इन गृह्यसूत्रों में इस शब्द का प्रयोग मूल अर्थ में नही हुआ है। इस शब्द का अपने मूल अर्थ में प्रयोग वास्तव में स्मृतिकाल में ही हुआ है, किन्तु गृह्यसूत्रों में भी इन संस्कारों से सम्बन्धित उल्लेखों को नकारा नहीं जा सकता है कि हिन्दू - परम्परा में संस्कारों की प्राचीनकाल से ही परम्परा चली आ रही है और इस सम्बन्ध में अनेक ग्रन्थ भी देखने को मिलते हैं। यह बात भिन्न है कि प्राचीन ग्रन्थों में इन संस्कारों के विधि-विधानों का स्पष्ट उल्लेख तो नहीं मिलता, किन्तु इन ग्रन्थों के उल्लेखों से ऐसा तो प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में संस्कारों को किए जाने का विधान था। जहाँ तक संस्कारों की संख्या के विस्तार एवं नियमों का सम्बन्ध है, यह स्वीकार करना पड़ता है किं ऋग्वेद, आदि के सूक्तों में इनके विधि-विधान का निर्देश नहीं है, किन्तु उनमें प्रासंगिक रूप में समाविष्ट अनेक सन्दर्भों में संस्कारों का उल्लेख मिलता है, जैसे- ऋग्वेद में विवाह के प्रकारों की ओर संकेत किया गया है, विद्यार्थी - जीवन की प्रशंसा की गई है। सामवेद में हमें इन संस्कारों के स्वरूप में कोई जानकारी नहीं मिलती है।” यजुर्वेद में मुण्डन - संस्कार का ही उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद, आदि अन्य संहिताओं की अपेक्षा लौकिक-धर्म तथा धार्मिक विधि-विधान सम्बन्धी जानकारियों की दृष्टि से अथर्ववेद में पर्याप्त सामग्री प्राप्त होती है। इसमें मानव जीवन के प्रत्येक भाग से सम्बद्ध मन्त्र मिलते हैं। इसमें विवाह और अन्त्येष्टि-विषयक सूक्त ऋग्वेद की अपेक्षा अधिक विस्तृत हैं। " "संक्षेप में अथर्ववेद में इन तीनों वेदों की अपेक्षा
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हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय -एक, पृ. २, चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी, पंचम संस्करण १६६५.
७८ हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-एक, पृ. ४, चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी, पंचम संस्करण
१६६५.
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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
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