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साध्वी मोक्षरला श्री
सोलहवें प्रकरण में- प्रव्रज्या-विधि का उल्लेख किया गया है। सत्रहवें प्रकरण में- लोचकरण की विधि वर्णित है। अठारहवें प्रकरण में- उपयोग-विधि का वर्णन है। उन्नीसवें प्रकरण में- आद्यअटन की विधि का उल्लेख है। बीसवें प्रकरण में- उपस्थापना की विधि का विवेचन है। इक्कीसवें प्रकरण में- अनध्याय-विधि प्रस्तुत की गई है। बाईसवें प्रकरण में- स्वाध्याय-प्रस्थापन की विधि का प्रस्तुतिकरण है। तेईसवें प्रकरण में- योगनिक्षेप की विधि कही गई है। चौबीसवें प्रकरण में- योग की विधि बताई गई है। पच्चीसवें प्रकरण में- कल्पत्रेप-सामाचारी का वर्णन है। छब्बीसवें प्रकरण में- याचना की विधि का प्रवेदन किया गया है। सत्ताईसवें प्रकरण में- वाचनाचार्य की प्रस्थापना की विधि का उल्लेख है। अट्ठाईसवें प्रकरण में- उपाध्याय की प्रस्थापना-विधि उल्लेखित है। उनतीसवें प्रकरण में- आचार्य की प्रस्थापना-विधि वर्णित है।
तीसवें प्रकरण में- प्रवर्तिनी और महत्तरा की प्रस्थापना-विधि का निरूपण है।
एकतीसवें प्रकरण में- गण की अनुज्ञा-विधि निर्दिष्ट है। बत्तीसवें प्रकरण में- अनशन की विधि दर्शित की गई है। तेंतीसवें प्रकरण में- महापरिष्ठापनिका की विधि की चर्चा है। चौंतीसवें प्रकरण में- प्रायश्चित्त-विधि का कथन किया गया है। पैंतीसवें प्रकरण में- जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा-विधि का उल्लेख है। छत्तीसवें प्रकरण में- स्थापनाचार्य की प्रतिष्ठा-विधि का उल्लेख है। सैंतीसवें प्रकरण में- मुद्रा-विधि का वर्णन है। अड़तीसवें प्रकरण में- चौसठ योगिनियों के नामोल्लेख के साथ उनका उपशम-प्रकार बताया गया है।
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