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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
उल्लेख मिलता है,२४५ किन्तु इस संस्कार के विधि-विधानों का उल्लेख इन ग्रन्थों में कहीं नहीं मिलता है। दिगम्बर-परम्परा में भी आकाश-दर्शन तीसरे दिन ही कराया जाता है। दिन के सम्बन्ध में दोनों एकमत हैं, किन्तु दर्शन-विधि के सम्बन्ध में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर-परम्पराओं में कुछ मतभेद हैं। वैदिक-परम्परा में यह विधि-विधान निष्क्रमण-संस्कार के अन्तर्गत ही किया जाता है। वैदिक-परम्परा में संस्कार करने का समय जन्म के पश्चात् बारहवें दिन से चतुर्थ मास तक माना गया है। भविष्यपुराण और बृहस्पतिस्मृति इस संस्कार के लिए जन्म से बारहवें दिन का विधान करते हैं, किन्तु गृह्यसूत्रों एवं अन्य स्मृतियों के अनुसार सामान्यतः जन्म के तीसरे या चौथे मास में यह संस्कार किया जाना चाहिए। यम नामक ग्रन्थ में तृतीय और चतुर्थ मास के विकल्प का स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है - तृतीय मास में शिशु को सूर्यदर्शन कराना चाहिए तथा चतुर्थ मास में चन्द्रदर्शन। यदि किसी प्रकार उपर्युक्त अवधि में संस्कार सम्पन्न नहीं हो पाता है, तो आश्वलायन के अनुसार यह संस्कार अन्नप्राशन- संस्कार के समय अवश्य किया जाना चाहिए।
श्वेताम्बर-परम्परा में वर्धमानसूरि के अनुसार सूतिकागृह के समीप के गृह में गृहस्थ-गुरु (विधिकारक) परमात्मा की पूजा करने के पश्चात् जिनप्रतिमा के आगे सूर्य की प्रतिमा को स्थापित करके विधिपूर्वक उसकी भी पूजा करे, तत्पश्चात् स्नान से शुद्ध एवं वस्त्रालंकार से सुसज्जित शिशु की माता को शिशुसहित प्रत्यक्ष सूर्य के सम्मुख ले जाकर गृहस्थ-गुरु निम्न सूर्यमंत्र का उच्चारण करके माता एवं पुत्र को सूर्यदर्शन कराए -
“ॐ अहँ सूर्योऽसि, दिनकरोऽसि, सहस्रकिरणोऽसि, विभावसुरसि, तमोऽपहोऽसि, प्रियंकरोऽसि, शिवंकरोऽसि, जगच्चक्षुरसि, सुरवेष्टितोऽसि, मुनिवेष्टितोऽसि, विततविमानोऽसि, तेजोमयोऽसि, अरुणसारथिरसि, मार्तण्डोऽसि, द्वादशात्मासि, चक्रबान्धवोऽसि नमस्ते भगवन् प्रसीदास्य कुलस्य तुष्टिं, पुष्टिं, प्रमोद कुरु-कुरू सन्निहतो भव अहँ ॐ।।"
२४५ औपपातिकसूत्र, सं.-मधुकरमुनि, सूत्र-१०५ । २४६ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-पांचवाँ (तृतीय परिच्छेद), पृ.-१११, चौखम्बा विद्याभवन,
पांचवाँ संस्करण १६६५ ।। २४७ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-पांचवाँ (तृतीय परिच्छेद), पृ.-१११, चौखम्बा विद्याभवन,
पांचवाँ संस्करण १६६५ ।। ५० देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-पांचवाँ (तृतीय परिच्छेद), पृ.-१११, चौखम्बा विद्याभवन,
पांचवाँ संस्करण १६६५ 1 २४६ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-चतुर्थ, पृ.-११ , निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् १६२२
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