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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
पर गुरु चौकोर शुभ आसन पर बैठकर मंत्रपूर्वक इन सभी माताओं का आह्वान, संनिधान एवं गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, आदि से द्रव्यपूजन करे। कुछ लोग चामुण्डा, त्रिपुरा को छोड़कर छ: माताओं की ही पूजा करते हैं। तत्पश्चात् इन माताओं की पूजा करके शिशु के कल्याण हेतु प्रार्थना की जाती है। तदनन्तर मातृस्थापन के अग्र भूमिभाग पर चन्दन का लेप कर अम्बा माता की स्थापना करे तथा उसकी भी विधिपूर्वक पूजा करे। तत्पश्चात् शिशु की माता सहित कुलवृद्धाएँ, सधवा स्त्रियाँ, आदि गीत गाते हुए एवं वाजिन्त्र बजाते हुए रात्रि-जागरण करें तथा प्रातः मंत्रोच्चारपूर्वक सभी माताओं का विसर्जन करें। उसके बाद गृहस्थ-गुरु शिशु को पंचपरमेष्ठी-मंत्र से अभिमंत्रित जल से अभिसिंचित करे तथा वेद-मंत्र से आशीर्वाद दे। सूतक में दक्षिणा नहीं दी जाती है।
इसी विधि के अन्त में वर्धमानसूरि ने संस्कार हेतु आवश्यक सामग्री का भी उल्लेख किया है। इस विधि की विस्तृत जानकारी हेतु मेरे द्वारा किए गए आचारदिनकर के अनुवाद को देखा जा सकता है। उपसंहार -
जैसा कि हम पूर्व में बता चुके हैं, इस संस्कार के माध्यम से व्यक्ति अनिष्टकारी शक्तियों का निवारण कर अभीष्ट की प्राप्ति करना चाहता है, साथ ही इस संस्कार का अन्य प्रयोजन कुलदेवी की परम्परा को जीवंत रखना होगाऐसा भी हम मान सकते हैं, क्योंकि व्यक्ति कुल-परम्परा के माध्यम से ही कुलाचार के विधि-विधानों से भलीभाँति परिचित हो सकता है। यह संस्कार भी कुल-परम्परा से सम्बन्धित है। अपनी कुल- परम्परा में किए जाने वाले विधि-विधानों से कुल की एकता प्रकट होती है। आज हम कितने ही ऐसे विधि-विधानों के बारे में सुनते हैं, पर उनका व्यवहार में प्रचलन न होने के कारण मात्र नामोल्लेख ही मिलता है।
इस संस्कार के माध्यम से व्यक्ति को अपने कुल की देवी का भी ज्ञान होता है।
शुचिक्रिया-संस्कार शुचिसंस्कार का स्वरूप -
___ यह संस्कार दैहिकशुद्धि, स्थानशुद्धि हेतु किए जाने वाले विधि-विधानों से सम्बन्धित है। शुचि का अभिप्राय सभी परम्पराओं में प्रायः शुद्धि, अर्थात् पवित्रता से ही लिया गया है। व्यक्ति के जन्म एवं मरण के कारण जो अशुचि उत्पन्न
स
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