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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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की कोई विशिष्ट विधि देखने को नहीं मिली। आदिपुराण में मात्र उनके कार्यों का ही उल्लेख किया गया है, जैसे२१- वह मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविकाओं को समीचीन मार्ग में लगाता हुआ अच्छी तरह संघ का पोषण करे तथा शास्त्र-अध्ययन की इच्छा करने वाले को दीक्षा देकर शास्त्राध्ययन कराए और धर्मात्मा जीवों के लिए धर्म का प्रतिपादन करे। वह गणनायक सदाचार धारण करने वालों को प्रेरित करे। दुराचारियों को दूर हटाए और किए हुए स्वकीय अपराधरूपी मल को शोधता हुआ अपने आश्रितगण की रक्षा करे। वर्धमानसूरि ने आचारदिनकर में वाचनाचार्य एवं गणनायक के जो कार्य बताए हैं, उनका कार्यक्षेत्र आदिपुराण में वर्णित कार्यों की अपेक्षा व्यापक है। वर्धमानसूरि के अनुसार इस संस्कार से संस्कारित मुनि को वाचना देने, तप-विधान करवाने एवं दिशा अनुज्ञा के साथ-साथ व्रतारोपण, नंदी, योगोद्वहन, प्रतिष्ठा, शान्तिक एवं पौष्टिककर्म करवाने की भी अनुमति प्रदान की जाती है।
इस प्रकार दिगम्बर एवं श्वेताम्बर-परम्परा में प्रचलित इन दोनों विधियों में आंशिक समानता एवं आंशिक भिन्नता है।
श्वेताम्बर-परम्परा के अन्य ग्रन्थों में भी इस संस्कार का उल्लेख मिलता है, जैसे- विधिमार्गप्रपा, सामाचारी, सुबोधासामाचारी आदि। विधिमार्गप्रपा एवं सामाचारी में यह विधि वाचनानुज्ञा (वाचनाचार्य) के नाम से ही विवेचित की गई है, किन्तु सुबोधासामाचारी में इस संस्कार का उल्लेख गणानुज्ञा के रूप में किया गया है। इस विधि को ग्रन्थकारों ने अपने-अपने ग्रन्थों मे भले ही भिन्न-भिन्न नामों से अभिहित किया हो, किन्तु उनकी विधियाँ प्रायः एक समान ही है, कहीं-कहीं पर यत्किंचित् असमानता भी दृष्टिगोचर होती है। जैसे- आचारदिनकर में वाचनाचार्य या गणानुज्ञार्थ गणाचार्य (गणि) को वर्धमान स्तुतियों द्वारा चैत्यवंदन करने के पश्चात् श्रुतदेवता, शान्तिदेवता आदि के आराधनार्थ कायोत्सर्ग एवं स्तुति करने का निर्देश दिया गया है,५२३ जबकि विधिमार्गप्रपा, सुबोधासामाचारी, सामाचारी आदि में चैत्यवंदन के पश्चात् देवी-देवताओं के आराधनार्थ कायोत्सर्ग एवं स्तुति करने का उल्लेख नहीं मिलता है। इसी प्रकार इस पदारोपण-संस्कार के अवसर पर किन-किन द्वारा महोत्सव किया जाए, इसका उल्लेख आचारदिनकर में तो मिलता है, किन्तु विधिमार्गप्रपा, सुबोधासामाचारी, सामाचारी आदि में नहीं मिलता है। कुछ क्रियाएँ ऐसी भी हैं, जिनका उल्लेख आचारदिनकर में नहीं मिलता
५"आदिपुराण, अनु.- डॉ. पन्नालालजी जैन, पर्व-अडतीसवाँ, पृ.-२५४ से २५५, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ
संस्करण २०००. ५२२ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-तेईसवाँ, पृ.-११२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे प्रथम संस्करण १६२२. ५२"आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-तेईसवाँ, पृ.-१११, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२.
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