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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
गोचरी करना, पात्र प्रक्षालन करना, पात्रों को विधिपूर्वक यथास्थान पर रखना, स्वाध्याय करना, पुनः प्रतिलेखना करना, संध्याकालीन आवश्यकक्रिया करना, रात्र के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करना, प्रथम प्रहर के व्यतीत होने पर संथारा पोरसी करके निद्राधीन होना आदि की विधि प्रायः आचारदिनकर, सामाचारी एवं यतिदिनचर्या ग्रन्थ में एक जैसी ही बताई गई है, फिर भी कुछ ऐसी क्रियाएँ हैं, जिनका उल्लेख हमें आचारदिनकर में ही मिलता है, किन्तु सामाचारी एवं यतिदिनचर्या ग्रन्थ में नहीं मिलता है और कुछ महत्वपूर्ण बातें हमें आचारदिनकर में ही देखने को नहीं मिलती है, किन्तु सामाचारी आदि में देखने को मिलती है। जैसे - सामाचारी के अनुसार मुनि को गोचरी करने से पूर्व कुछ गाथाओं का स्वाध्याय करना चाहिए, इसका निर्देश दिया गया है तथा सामाचारी में हमें इन गाथाओं का उल्लेख भी मिलता है, किन्तु आचारदिनकर में हमें इस प्रकार का उल्लेख देखने को नहीं मिलता। इसी प्रकार भोजनमंडली में बैठने से पूर्व मुनि क्या क्रिया करे - उसका उल्लेख हमें सामाचारी में तो मिलता है, किन्तु आचारदिनकर में नहीं मिलता है।
दिगम्बर- परम्परा के मूलाचार ग्रन्थ में साधुओं को पूर्वाह्नकाल, अपराहूनकाल तथा रात्रि के उभयकाल में निरन्तर पठन-पाठन, व्याख्यानादिक स्वाध्याय करने का उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार मुनि की आंशिक दिनचर्या का भी उल्लेख मूलाचार की टीका में मिलता है, यथा " - सूर्य उदय होते ही मुनि को देववंदना करनी चाहिए। तत्पश्चात् दो घड़ी व्यतीत होने पर श्रुतभक्ति एवं गुरुभक्ति करके स्वाध्याय करना चाहिए। दो प्रहर में दो घड़ी शेष रहने पर श्रुतभक्तिपूर्वक स्वाध्याय सम्पूर्ण करना चाहिए। तत्पश्चात् संस्तर स्थान से दूर मूत्रपुरीषादिक की शंका का निवारण करके हस्तपादादि का प्रक्षालन करना चाहिए तथा पिच्छी एवं कमंडलु का ग्रहण करके मध्याहून का देववंदन करना चाहिए । तत्पश्चात् ही उसे उदरपूर्ति के लिए भिक्षाचर्या के लिए अटन करना चाहिए .....
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इत्यादि । मुनि द्वारा प्रतिक्रमण आदि क्रिया करने सम्बन्धी उल्लेख भी मूलाचार में मिलते हैं, किन्तु आचारदिनकर में जिस प्रकार मुनि की अहोरात्रिचर्या का सुव्यवस्थित उल्लेख मिलता है, वैसा उल्लेख हमें दिगम्बर- परम्परा के ग्रन्थों में देखने को नहीं मिलता । वैदिक परम्परा में भी मुनि सम्बन्धी अनिवार्य कार्यों,
५८ सामाचारी, तिलकाचार्य विरचित, प्रकरण - २१, पृ. २८, सेठ डाह्याभाई मोकमचन्द, अहमदाबादः १६६०. to मूलाचार, सं. - डॉ. फूलचन्द्र जैन एवं श्रीमती मुन्नी जैन, सूत्र सं.-५/७४, भारतवर्षीय अनेकांत विद्वत् परिषद्, प्रथम संस्करण १६६६.
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r 'मूलाचार, सं. - डॉ. फूलचन्द्र जैन एवं श्रीमती मुन्नी जैन, पृ. ११६, भारतवर्षीय अनेकांत विद्वत् परिषद्, प्रथम
संस्करण १६६६.
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