________________
साध्वी मोक्षरत्ना श्री
_५६२
यथा - भिक्षा, जप, स्नान, ध्यान, शौच एवं देवार्चन का उल्लेख तो मिलता है, किन्तु उनका क्रमबद्ध विवेचन तो हमें वहाँ भी देखने को नहीं मिलता है।
296
आचारदिनकर में उपर्युक्त विषयों के अतिरिक्त, बालसाधु और चतुर्थ, छठवें, अष्टम भक्त के तपस्वी पुनः दूसरी बार कब एवं किस विधि से भिक्षाटन करके आहार प्राप्त करे, मुनियों को किन-किन स्थितियों में गमनागमन में लगे दोषों की आलोचना करनी चाहिए, साधु को आहार की गवेषणा हेतु एकांकी क्यों नहीं जाना चाहिए? इन सब बातों का भी उल्लेख मिलता हैं, किन्तु सामाचारी, यतिदिनचर्या आदि में हमें इन बातों का उल्लेख नहीं मिलता है। उत्तराध्ययन सूत्र में अवश्य इस बात की चर्चा मिलती है कि आहार करने के छः कारणों में से किसी एक कारण के उपस्थित होने पर मुनि तृतीय प्रहर में भक्तपान की गवेषणा कर सकता है।
५६३
संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि यतिदिनचर्या एवं सामाचारी में मुनिदिनचर्या का वर्णन बहुत विस्तार से किया गया है। मुनि को कौनसी क्रिया किस प्रकार से और कैसे करनी चाहिए- इन सब बातों का इन ग्रन्थों में विस्तृत विवेचन मिलता है। पंचवस्तु में भी मुनि की दिनचर्या सम्बन्धी क्रियाओं का उल्लेख बहुत विस्तृत मिलता है, किन्तु उसमें आचारदिनकर की भाँति क्रमपूर्वक विधि का उल्लेख नहीं मिलता है । उसमें मुनि की दिनचर्या को दस भागों में विभक्त करके उनसे सम्बन्धित क्रियाओं का वर्णन किया गया है। आचारदिनकर में यद्यपि मुनि की अहोरात्रिचर्या का संक्षिप्त ही उल्लेख मिलता है, फिर भी उसमें मुनि की चर्या का विधिवत् एवं सुव्यवस्थित प्रस्तुतिकरण किया गया है। ग्रन्थ का विस्तार न करते हुए ग्रन्थकार ने यथास्थान उन-उन क्रियाओं की सम्यक् जानकारी हेतु आगमग्रन्थों के सन्दर्भ भी दिए हैं, यथा - मुनि पिण्डनिर्युक्तिशास्त्रों में कही गई विधि के अनुसार आहार- पानी की गवेषणा करे, दशवैकालिकसूत्र के पिण्डैषणा नामक अध्ययन में कही गई विधि के अनुसार आहार- पानी आदि ग्रहण करके पुनः वसति में प्रवेश करे.. ..इत्यादि ।
५२ धर्मशास्त्र का इतिहास, पांडुरंग वामन काणे (प्रथम भाग ), अध्याय- २८, पृ. ४६२, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ, तृतीय संस्करण १८६०
r
उत्तराध्ययनसूत्र, मधुकरमुनि, सूत्र सं.- २६ / ३२, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, प्रथम संस्करण १६६२. ५६४ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-तीसवाँ, पृ. १२८ - १२८, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण
१६२२.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org