Book Title: Jain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 366
________________ 362 साध्वी मोक्षरत्ना श्री आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने इसकी निम्न विधि प्रतिपादित की हैआवश्यक-विधि वर्धमानसूरि में षडावश्यकों के नामों का उल्लेख करते हुए क्रमशः षडावश्यकों में उन-उन से सम्बन्धित मूलसूत्र एवं उसकी टीका की भी व्याख्या की है। इन षडावश्यकों में सर्वप्रथम सामायिक का स्वरूप एवं उससे सम्बन्धित सूत्रों की व्याख्या की गई है। सामायिक-सूत्रों के अन्तर्गत देशविरति एवं सर्वविरति सामायिकदण्डक, नमस्कार-महामंत्र सूत्रों की व्याख्या की गई है तथा प्रसंगवश इसमें सामायिक का क्या फल है, स्वाध्याय कितने प्रकार का कहा गया है, एवं नमस्कारमंत्र की क्या महिमा है- इसका उल्लेख करते हुए महामंत्र के प्रभाव को बताने के लिए पाँच दृष्टांत भी दिए गए है। चतुर्विंशतिस्तव नामक दूसरे आवश्यक में वन्दनक के १६८ विकल्पों (भंगों) का उल्लेख करते हुए उनका विस्तृत विवेचन किया गया है। इन १६८ विकल्पों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार किया गया है- मुहपत्ति की प्रतिलेखना, शरीर की प्रतिलेखना और आवश्यक क्रिया- इन सबके पच्चीस-पच्चीस विकल्प है। इच्छा आदि छः स्थान, छ: गुण, छः छंदेण आदि रूप गुरु के छः वचन, वंदन करने के पाँच अधिकारी, वंदन के पाँच अनधिकारी, वंदन की पाँच निषेधावस्थाएँ, एक अवग्रह, वन्दन के पाँच नाम तथा वन्दन के पाँच दृष्टांत, गुरु की तेंतीस आशातना, वन्दन के बत्तीस दोष, वन्दन के आठ कारण एवं अवन्दन के छ: दोष- इस प्रकार वन्दन-विधि के १६८ स्थान, अर्थात् प्रकार होते हैं। तदनन्तर ग्रन्थकार ने वंदनसूत्र की व्याख्या की है। प्रतिक्रमण नामक आवश्यक में प्रतिक्रमणसूत्रों, यथा- इरियावहिसूत्र, तस्स उत्तरीसूत्र, देवसिक-आलोचना के सूत्र, साधु के रात्रिकआलोचना के सूत्र, साधु के दैवसिक-आलोचना के सूत्र, श्रावक के दिवस एवं रात्रि सम्बन्धी आलोचनासूत्र, साधु के लघुदण्डकसूत्र, प्रतिक्रमण के मध्य साधुओं के अतिचारों की आलोचना करने का सूत्र, श्रावकों के अतिचारों की गाथाएँ, गुरुक्षामणासूत्र, संघ आदि से सम्बन्धित क्षमापनासूत्र, पाक्षिक क्षामणा सम्बन्धितसूत्र, श्रमणसूत्र, यति सम्बन्धित पाक्षिकसूत्र, श्रुतदेवता की स्तुति एवं श्रावकसूत्र की व्याख्या की गई है। तदनन्तर कायोत्सर्ग आवश्यक में कायोत्सर्ग के स्वरूप को बताते हुए अन्नत्थसूत्र की व्याख्या की गई है। प्रसंगवंश कायोत्सर्ग के अपवादों एवं दोषों का भी मूलग्रन्थ में उल्लेख हुआ है। सभी कायोत्सर्ग में साधकों को चन्देस निम्मलयरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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