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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
से बचा जा सकता है। इस प्रकार पथ्यों के सेवन में यह संस्कार भी सहायभूत है। गभार्धान संस्कार परिवार एवं समाज में नए सदस्य के शुभागमन का सूचक होता है। वह किसी नवागत सदस्य के स्वागत हेतु तत्पर रहने की सूचना देता है। पुंसवन संस्कार
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शिशु-शरीर में पूर्णीभावरुपी प्रमोदजन्य स्तनों में दूध की उत्पत्ति के सूचकार्थ किया जाने वाला यह संस्कार भी वर्तमान जीवन में अत्यन्त उपयोगी है। शिशु का जीवन जन्म के बाद छः मास तक माता के दुग्ध पर ही आधारित रहता है और उसी से उसका पोषण होता है, किन्तु यदि माता के स्तनों में दूध की उत्पत्ति समुचित न हो, तो शिशु को पर्याप्त आहार नहीं मिल सकता है और पर्याप्त आहार के अभाव में शिशु का स्वास्थ्य भी बिगड़ सकता है। इस संस्कार के माध्यम से गर्भवती स्त्री के मन में शिशु के प्रति वात्सल्य एवं प्रीति की भावना को विकसित किया जाता था, जिसके परिणामस्वरूप माता के स्तनों में स्वतः ही दूध की उत्पत्ति हो जाती थी, किन्तु वर्तमान में हम देखते हैं कि कितनी ही स्त्रियों की यह शिकायत रहती है कि उनके स्तनों में दूध उतरता ही नहीं हैइसका कारण क्या है? इसका कारण है माताओं में सन्तान के प्रति वात्सल्य का अभाव। यह कटु सत्य है, जिसे हमें स्वीकार करना पड़ेगा। आज हम देखते हैं कि कितनी ही गर्भवती स्त्रियाँ अपने गर्भ को भाररूप समझती है, तथा कभी-कभी तो अपनी इच्छानुसार सन्तान के न होने पर स्त्रियाँ गर्भपात जैसे दुष्कृत्य कर बैठती हैं। यह सब प्रक्रियाएँ मातृत्व एवं वात्सल्यभाव को क्षीण कर देती हैं, जिसका परिणाम उसके शरीर पर भी पड़ता है, अतः वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सन्तान के प्रति वात्सल्य एवं मातृत्वभाव को विकसित करने हेतु यह संस्कार उपयोगी है। वात्सल्यभाव ही एक ऐसा तत्त्व है, जो माता और सन्तान में सम्यक् सम्बन्ध को सूचित करता है ।
जन्म-संस्कार
जातकर्म - संस्कार का मूलभूत हेतु प्रसव वेदना को सहूय बनाना था तथा इसके साथ ही गर्भिणी स्त्री को प्रसव के बाद स्नान आदि द्वारा शुद्धि कराना था। वर्तमान में भी हम देखते हैं कि कितनी ही स्त्रियों को प्रसव की वेदना सहन नहीं होती है, जिसके कारण अनेक प्रकार के उपकरणों द्वारा स्त्री का प्रसव करवाया जाता है। उसका परिणाम कभी-कभी तो इतना भयंकर होता है कि स्त्री अपने जीवन से ही हाथ धो बैठती है। इस संस्कार के माध्यम से उसे सुख- समाधिपूर्वक प्रसव कराया जाता है, जिससे न तो शिशु के स्वास्थ पर कोई असर पड़ता है और न ही गर्भवती स्त्री, इसलिए वर्तमान समय में इस संस्कार का अपना ही
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