Book Title: Jain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 397
________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 393 की तरफ दौड़ रहे हैं, उनमें पुनः मातृमूलक को छोड़कर पाश्चात्य संस्कृति भारतीय संस्कृति के प्रति अहोभाव उत्पन्न करने हेतु इस प्रकार के संस्कार आवश्यक हैं। यह संस्कार बालक के जीवन में माता के मूल्य एवं महत्व को स्पष्ट करता है। शुचिकर्म संस्कारः गर्भिणी स्त्री के प्रसव के बारहवें दिन पवित्रीकरण हेतु किया जाने वाला यह संस्कार भी भारतीय-संस्कृति की शौचमूलक प्रकृति का ही प्रतीक है। भारतीय-संस्कृति में जननाशौच एवं मरणाशौच- इन दो प्रकारों के शौच की शुद्धि को आवश्यक माना गया है। गर्भिणी स्त्री के प्रसव से लेकर जब तक यह शुद्धिरूपी संस्कार न किया जाए, तब तक उस घर में सूतक माना जाता है तथा गर्भिणी स्त्री को एक कमरे में ही रखा जाता है, क्योंकि प्रसव के बाद भी स्त्री के शरीर में सतत् दूषित रक्त का प्रवाह चालू ही रहता है, जो वातावरण पर गलत असर करता है। पूर्व में भी प्रसूता को एक निश्चित समय तक एक स्थान पर ही रखा जाता था, जिससे की आस-पास का वातावरण दूषित न हो, साथ ही बाह्य-संक्रामक अशुचियों एवं स्थितियों का प्रभाव माता और शिशु पर न हो। निश्चित काल के पूर्ण होने पर ही उसे इस संस्कार से संस्कारित करके शुद्ध किया जाता था। वर्तमान में कतिपय लोग इन संस्कारों को रूढ़िवादिता का नाम देकर सभ्यता के नाम पर इन संस्कारों को छोड़ रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में वातावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है, अतः वातावरण को शुद्ध रखने हेतु भी यह संस्कार आवश्यक है। नामकरण-संस्कार यह संस्कार भी शिशु के जीवन का एक महत्वपूर्ण पक्ष है, जिसे किसी भी स्तर पर नकारा नहीं जा सकता है। नाम व्यक्ति के जीवन पर बहुत प्रभाव डालता है, अतः शिशु को गुणों से युक्त नाम से सम्बोधित किया जाना आवश्यक है। ज्योतिषशास्त्र भी इस बात को स्वीकार करता है कि व्यक्ति की सफलता का कुछ अंश नाम पर भी आधारित होता है, किन्तु वर्तमान में माता-पिता के मनःमस्तिष्क पर पाश्चात्य-संस्कृति का इतना गहरा प्रभाव पड़ रहा है, कि वह इन सब बातों को गौण करके ऐसे-ऐसे नाम रखते हैं, जिसका व्यक्ति के जीवन से कहीं से कहीं तक कोई सम्बन्ध नहीं होता है। अतः व्यक्ति का नाम ऐसा होना चाहिए, जो उसे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में न केवल सफलता ही प्रदान करे, वरन् उसके गुणों को भी प्रकट करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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