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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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यह संस्कार, अर्थात् संलेखनाव्रत का ग्रहण आवश्यक है, जिससे कि वह अपना आत्मकल्याण कर सके। इस प्रकार वर्तमान के इस भौतिकवादी युग में अध्यात्म की किरणों को प्रस्फुटित करने वाला यह संस्कार अत्यन्त उपयोगी है। ब्रह्मचर्यव्रतग्रहण-विधिः
इस संस्कार के माध्यम से व्यक्ति में पुरुष का स्त्री के प्रति और स्त्री का पुरुष के प्रति जो आकर्षण भाव है, उसे समाप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। कहा गया है कि इन्द्रियों में रसना, कर्मों में मोहनीय, व्रतों में कामवासना एवं गुप्तियों में मनोगप्ति- ये चार बड़े कष्ट से विजीत होते हैं, अतः व्रतों में सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मचर्यव्रत को इस संस्कार के माध्यम से सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है। इस व्रत के अभाव में जीव लौकिक और अलौकिक- सभी गुणों को नष्ट कर देता है। इस प्रकार यह व्रत व्यक्ति के गुणों को अक्षुण्ण रखने में भी सहायक है। क्षुल्लक-विधि
इस विधि में साधक को एक अवधि विशेष हेतु पंचमहाव्रत एवं छठवें रात्रिभोजन-त्यागवत का दो करण एवं तीन योग से ग्रहण करवाया जाता है। मुनिजीवन की पूर्व भूमिका के रूप में किया जाने वाला यह संस्कार अत्यन्त उपयोगी है। इस संस्कार के माध्यम से व्यक्ति इन व्रतों का पालन करते हुए परिपक्वता को प्राप्त करता है, जो उसे अग्रिम संस्कारों हेतु प्रस्तुत करता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह संस्कार अत्यन्त उपयोगी है। आज हम देखते हैं कि साधकों को पूर्व प्रशिक्षण के बिना उन्हें महाव्रतों के पालनी की प्रतिज्ञा करा दी जाती है, जिसका परिणाम यह होता है कि या तो वे उन व्रतों का सम्यक् प्रकार से निर्वाह नहीं कर पाते हैं, या फिर गृहीत व्रत का त्याग कर देते हैं, जिससे जैन-शासन की बहुत ही आलोचना होती है। अतः प्रव्रज्या-विधि से पूर्व किया जाने वाला यह संस्कार वर्तमान जीवन में बहुत ही उपयोगी है। प्रव्रज्या-विधि
इस विधि के माध्यम से व्यक्ति को समता की साधना करवाई जाती है। समता व्यक्ति की स्वभावदशा है और क्रोध, मान, माया, लोभ आदि आत्मा की विभावदशा है, किन्तु अनादिकाल के संस्कारों के कारण व्यक्ति अपनी स्वभावदशा को भूल चुका है। और क्रोधादि विभावदशा को ही अपना मान बैठा है। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति को स्वभावदशा का अनुभव करना बहुत ही जरूरी है। इसके अभाव में व्यक्ति राग-द्वेष की गाँठे बाँधता रहता है, जिससे उसका एवं समाज का जीवन तनावग्रस्त रहता है। वर्तमान में भी हम देखते हैं कि थोड़ा सा किसी
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