Book Title: Jain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 408
________________ 404 साध्वी मोक्षरत्ना श्री शान्तिककर्म-विधि निर्विघ्न फल की प्राप्ति एवं क्षुद्र उपद्रवों तथा अशुभ वातावरण को दूर करने के लिए यह विधि की जाती है। शान्तिक विधान करने से व्यक्ति के संकटों का ही निवारण नहीं होता है, वरन् उसमें ऐसी आस्था उत्पन्न होती है कि विघ्न-बाधाएँ दूर हो गई है, उससे उसे सुख-शान्ति की प्राप्ति होती है। व्यक्ति के जीवन में शान्ति होगी, तो समाज में शान्ति होगी और समाज में शान्ति होगी, तो देश एवं राष्ट्र में शान्ति रहेगी। शान्ति के मनोभावों को सजग करने हेतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी यह संस्कार अत्यन्त उपयोगी है। आज समाज में चारों तरफ अशान्ति का वातावरण है राष्ट्र, राज्य, समाज एवं व्यक्ति एक-दूसरे से कट रहे हैं, उनके बीच दरारें पड़ रही हैं। ऐसी स्थिति में शान्ति स्थापित करने का संदेश देने हेतु यह संस्कार उपयोगी सिद्ध हो सकता है। पौष्टिककर्म-विधि आरम्भ किया गया कार्य पुष्टि को प्राप्त करे, अर्थात् सिद्धि को प्राप्त करे, इस उद्देश्य से यह संस्कार किया जाता है। व्यक्ति कोई भी कार्य करता है, तो उसके मन में यह संशय रहता है कि यह कार्य पूर्ण हो पाएगा या नहीं। वर्तमान के प्रतिस्पर्धी माहौल में तो यह भय और अधिक बना रहता है और इस भय के कारण व्यक्ति किसी भी कार्य को शुरू करने से घबराता है। यह कर्म एक तरह से उसे कार्य की सिद्धि के प्रति आश्वस्त करता है। यद्यपि पुरुषार्थ तो व्यक्ति स्वयं ही करता है, किन्तु उस कार्य के प्रति साहस का संबल यह कर्म ही प्रदान करता है। इस प्रकार व्यक्ति के लक्ष्य की सफलता के लिए यह संस्कार भी उपयोगी है। बलिविधान यह विधान देवताओं को नैवेद्य अर्पित करके उन्हें संतुष्ट करने हेतु किया जाता है, किन्तु वास्तव में देखा जाए, तो यह विधान व्यक्ति में त्याग की वृत्ति का सर्जन करता है। भोगवृत्ति में आकण्ठ डूबे हुए मानवों के लिए वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह संस्कार अत्यन्त उपयोगी है। वर्तमान समय में व्यक्ति इतना स्वार्थपरक होता जा रहा है कि उसमें उसके नैतिक गुणों का स्तर कम होता जा रहा है। त्याग करने के स्थान पर मात्र संग्रह करने की प्रवृत्ति ही चारों तरफ दिखाई देती है। ऐसे समय में त्याग के मानवीय एवं नैतिक गुणों का विकास करने में यह संस्कार उपयोगी है। बलिविधान में देवता को नैवेद्य समर्पण तो एक माध्यम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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