Book Title: Jain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 410
________________ 406 साध्वी मोक्षरत्ना श्री तप-विधि तपश्चर्या शरीर एवं इन्द्रियों को वश में रखने, पापों का क्षय करने एवं वासनाओं से विमुक्ति के लिए आवश्यक है। इस प्रकार तप केवल शरीर को कष्ट देने की प्रक्रिया ही नहीं है, बल्कि आत्मशुद्धि की भी प्रक्रिया है और यही कारण है कि प्राचीन आचार्यों ने प्रायश्चित्त के दस प्रकारों में भी तप का प्रावधान किया है, किन्तु वर्तमान के इस भौतिकवादी युग में इन तपों का कोई महत्व नहीं रह गया हैं। लोग मात्र अपनी इन्द्रियों का पोषण करने में ही लगे हुए है तथा यह मानते हैं कि जिन्हें खाने को नहीं मिलता है, वे लोग ही तपस्या करते हैं, किन्तु ऐसी बात नहीं है, जिन्हें खाने को मिलता है, वे भी तपस्या करते हैं। क्योंकि वे सही अर्थों में तपस्या के अर्थ को समझते हैं। तपस्या से आत्मशुद्धि के साथ-साथ शरीरशुद्धि भी होती है। जैनदर्शन के अनुसार तप आत्म विशुद्धि या चित्तविशुद्धि का अनुपम हेतु है। साथ ही तप शरीरशुद्धि का भी माध्यम है। मुख्यतया शारीरिक क्रियाओं के लिए या शारीरिक ऊष्मा के लिए ईंधन खाद्य पदार्थों के कार्बोहाइड्रेट एवं चर्बी से प्राप्त होता है। उपवास के दरम्यान भोजन रूपी ईंधन नहीं मिलने से शरीर में संगृहीत चर्बी जलने लगती है तथा अनावश्यक रूप से जमा हुआ शरीर का कूड़ा-कचरा भी जलता है। चिकित्सकों ने भी अपने अनुभवों के आधार पर माना है कि कई बीमारियों में दवाई के बजाय उपवास अधिक लाभदायक है। ज्वर, एक्ज़िमा, रक्तचाप, चेचक, दमा, बवासीर आदि में उपवास रामबाण औषधि है। इस प्रकार स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह विधि उपयोगी है। पदारोपण-विधि इस विधि के माध्यम से सामाजिक एवं राजनीतिक मुख्य पदों पर योग्य व्यक्तियों को अभिसिक्त किया जाता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह संस्कार अत्यन्त उपयोगी है। इसके अभाव में संघ एवं समाज में अराजकता की स्थिति बन जाती है, क्योंकि योग्य अधिकारी के अभाव में समाज एवं राज्य की व्यवस्था का संचालन सही ढंग से नहीं हो पाता है। अयोग्य पदाधिकारी स्वयं ही भ्रष्टाचार के रंग में रंगे हुए होने के कारण दूसरों के हिताहित का विचार नहीं कर पाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में योग्य व्यक्तियों का चयन कर उन्हें योग्य पद पर स्थापित करने की यह प्रक्रिया नितांत आवश्यक है। इस प्रकार हम देखते हैं कि विविध संस्कारों का अपना-अपना महत्व है और उनके उस महत्व के कारण ही वर्तमान में भी उनकी उपयोगिता सिद्ध होती है। उपर्युक्त विवेचन से इन संस्कारों की उपयोगिता वर्तमान में भी स्वतः ही सिद्ध हो जाती है। दूसरे, ये संस्कार व्यक्ति की जीवन-शैली को बहुत प्रभावित करते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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