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वर्षमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन विधि का उल्लेख करते हुए सर्वप्रथम उसके लक्षणों का निरूपण किया है। तदनन्तर सूरिपद के लिए उचित लग्न के आने पर यतिगुरु अथवा गृहस्थाचार्य पूर्वोक्त गुणों से युक्त, ब्रह्मचर्य को धारण करने वाले उस गृहस्थ विप्र को, जिसका भंद्रकरण-संस्कार किया जा चुका हो और मात्र शिखाधारी हो एवं उत्तरासंग से युक्त उस उत्तम गुण वाले ब्राह्मण को पौष्टिककर्म पूर्वक जैन ब्राह्मण आचार्य-पद की विधि कराए। इसके लिए सर्वप्रथम उस विप्र को समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दिलवाकर, देववन्दन, श्रुतदेवता आदि के कायोत्सर्ग एवं स्तुति करवाकर सम्यक्त्वदण्डक एवं द्वादशव्रतों का उच्चारण कराए। तदनन्तर लग्नवेला के आने पर गुरु किस प्रकार से गौतममंत्र सहित षोडशाक्षरी परमेष्ठी महाविद्या प्रदान कर, वासक्षेप करे, आदि का भी मूलग्रन्थ में उल्लेख हुआ है। जैन ब्राह्मण आचार्य की यह विधि पूर्ण होने के बाद गुरु किस प्रकार से उसे अनुज्ञा दे तथा शिष्य गुरु का किन वस्तुओं से सम्मान करे? इसका भी वर्धमानसूरि ने उल्लेख किया है। इसी प्रकार इस प्रकरण में जैन ब्राह्मण की उपाध्यायपद विधि, स्थानपतिपद विधि, कर्माधिकारीपद विधि, क्षत्रियों की राजपद विधि, सामन्तपदविधि, मण्डलेश्वरपदविधि, देशमण्डलाधिपतिविधि, ग्रामाधिपतिपदविधि, मंत्रीपद विधि, सेनापतिपदविधि, कर्माधिकारीपदविधि, वैश्यों एवं शूद्रों की श्रेष्ठिपदविधि, सार्थवाह पदविधि, गृहपतिपदविधि, महाशूद्र एवं कारूओं की पदारोपण-विधि, पशुओं के पदारोपण की विधि, संघपति-पदारोपणविधि आदि का भी मूलग्रन्थ में विस्तार से उल्लेख हुआ है। स्थानाभाव के कारण हम उनकी चर्चा यहाँ नहीं कर रहे हैं। मुद्रा-विधि
तदनन्तर प्रतिष्ठा आदि कृत्यों में उपयोगी ४२ प्रकार की मुद्रा-विधि का उल्लेख हुआ है। इन ४२ मुद्राओं के अतिरिक्त कुछ अन्य मुद्राओं की विधि का उल्लेख भी मूलग्रन्थ में हुआ है।
यहाँ मूलग्रन्थ में जिन मुद्रा-विधियों का उल्लेख हुआ है, उनके नामोल्लेख इस प्रकार हैं- परमेष्ठीमुद्रा, मुद्गरमुद्रा, वज्रमुद्रा, गरूड़मुद्रा, जिनमुद्रा, मुक्ताशुक्तिमुद्रा, अंजलिमुद्रा, सुरभिमुद्रा, पद्ममुद्रा, चक्रमुद्रा, सौभाग्यमुद्रा, यथाजातमुद्रा, आरात्रिकमुद्रा, वीरमुद्रा, विनीतमुद्रा, प्रार्थनामुद्रा, परशुमुद्रा, छत्रमुद्रा, प्रियंकरीमुद्रा, गणधरमुद्रा, योगमुद्रा, कच्छपमुद्रा, धनुःसंधानमुद्रा, योनिमुद्रा, दण्डमुद्रा, सिंहमुद्रा, शक्तिमुद्रा, शंखमुद्रा, पाशमुद्रा, खड्गमुद्रा, कुन्तमुद्रा, वृक्षमुद्रा, शाल्मकीमुद्रा, कन्दुकमुद्रा, नागफणमुद्रा, मालामुद्रा, पताकामुद्रा, घण्टमुद्रा, यथाजातमुद्रा, मोक्षकल्पलतामुद्रा, कल्पवृक्षमुद्रा आदि।
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