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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
के अभाव में मात्र उन क्रियाओं को करने या न करने का निर्देश तो दे सकता है, किन्तु यदि कोई व्यक्ति उसके निर्देशानुसार कार्य नहीं करता है तो वह उसे दण्डित नहीं कर सकता है। दूसरे, स्वामी के पास अधिकार होने से उनके निर्देश में कार्य करने वालो को भी थोड़ा भय रहता है कि यदि हम समुचित कार्य नहीं करेंगें, तो स्वामी हमें दण्डित करेगा या हमें पद से च्युत कर देगा। इस भय से भी वे उचित ढंग से कार्य करते हैं।
एक मालिक के अभाव में कार्य में समरूपता भी नहीं होती है, क्योंकि कोई कुछ निर्देश देता है और कोई कुछ अन्य। इससे कर्मचारी वर्ग असमंजस की स्थिति में पड़ जाता है कि क्या करे और क्या न करे? जिसका परिणाम यह होता है कि न तो कार्य ठीक ढंग से ही हो पाता है और न ही व्यक्ति अपने निश्चित लक्ष्य की पूर्ति ही कर पाता है। अतः इन समस्याओं के समाधान के लिए भी पदारोपण-विधि आवश्यक है।
इसके अतिरिक्त प्रजा की रक्षा हेतु, शत्रुराज्य के आक्रमण से रक्षा हेतु, आदि स्थितियों में निर्णय लेने हेतु राजा, सामन्त, मंत्री, सेनापति आदि पदों पर पदारोपण का होना आवश्यक है, जो ऐसे समय पर तुरन्त निर्णय ले सकें।
नामकरण-विधि एवं मुद्राविधि भी अपने-आप में महत्वपूर्ण है, क्योंकि व्यक्ति के नाम एवं विविध मुद्राओं का भी बहुत प्रभाव पड़ता है तथा सर्वकार्यों में जो शुभमुहूर्त देखा जाता है, वह उस कार्य में सफलता को प्राप्त करने हेतु किया जाता है। इस प्रकार समुचित मुहूर्त में योग्य व्यक्तियों को जनसाधारण की उपस्थिति में विधि-विधान पूर्वक पदारोपण करना समाज एवं राष्ट्रहित में आवश्यक
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