Book Title: Jain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 372
________________ 368 साध्वी मोक्षरत्ना श्री गुरु तथा साधुओं को वन्दन करें। आचारदिनकर में सामायिक की इस संक्षिप्त विधि का उल्लेख करके वर्धमानसूरि ने पुनः इसकी विस्तृत व्याख्या भी की है तथा इसके साथ ही पौषधविधि का तथा सामायिक पारने के सूत्र का भी उल्लेख किया है। मूलाचार में हमें सामायिक की विधि के सम्बन्ध में इतना ही उल्लेख मिलता है कि श्रमण को द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की शुद्धिपूर्वक अंजुलि को मुकुलित करके स्वस्थ बुद्धि से स्थित होकर अथवा एकाग्रमनपूर्वक तथा आकुलतारहित मन से आगमानुसार क्रमपूर्वक सामायिक करना चाहिए। ५६ इसके अतिरिक्त इस सम्बन्ध में हमें वहाँ और कोई सूचना उपलब्ध नहीं होती है। पौषध ग्रहण करने की विधि का दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में उल्लेख नही मिलता है। सागारधर्मामृत में वर्णित पौषध की विधि भी मात्र पौषध सम्बन्धी दिवस-रात्रि की क्रिया को ही उल्लेखित करती है। उसमें पौषध ग्रहण करने और उसके पारण की विधि नहीं दी गई है। ___ तदनन्तर वर्धमानसूरि ने चतुर्विंशतिस्तव की विधि का उल्लेख किया है। इसके अन्तर्गत उन्होंने सर्वप्रथम स्थापनाचार्य में भगवान एवं गुरु की कल्पना करने तथा स्थापनाचार्य का जघन्य, मध्यम एवं उत्कृष्ट कितना परिमाण होना चाहिए? इसका उल्लेख करते हुए चैत्यवंदन-विधि के तीन प्रकारों का उल्लेख किया है। आचारदिनकर के अनुसार नमस्कार-पाठ द्वारा किया जाने वाला जघन्य, पाँचदंडक एवं स्तुतियुगल द्वारा मध्यम एवं पाँचदंडक, चारस्तुति, स्तवन एवं प्रणिधानों द्वारा उत्कृष्ट चैत्यवंदन होता है।६६ इतना उल्लेख करने के बाद वर्धमानसूरि ने इन तीनों विधियों का विस्तार से उल्लेख किया है। दिगम्बर-परम्परा के मूलाचार ग्रन्थ में हमें स्तव की मात्र इतनी ही विधि मिलती है- शरीर, भूमि और चित्त की शुद्धिपूर्वक दोनों पैरों में चार अंगुल के अन्तर से समपाद खड़े होकर अंजुलि जोडकर सौम्यभाव से स्तवन करना चाहिए तथा यह चिन्तन करना चाहिए कि अर्हत् परमेष्ठी जगत् को प्रकाशित करने वाले उत्तम क्षमादि धर्मतीर्थ के कर्ता होने से तीर्थंकर कीर्तनीय हैं और केवलज्ञान से युक्त उत्तम बोधि देने वाले हैं, ७६८ मूलाचार, सम्पादकद्वयः डॉ. फूलचन्द्र जैन एवं डॉ. श्रीमती मुन्नी जैन, अधिकार- सातवाँ, पृ.-३३३-३४, भारतवर्षीय अनेकांत विद्वत परिषद्, प्रथम संस्करण : १६६६. ७६६ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-अड़तीसवाँ, पृ.- ३२४, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण : ___ १६२२. ७० मूलाचार, सम्पादकद्वयः डॉ. फूलचन्द्र जैन एवं डॉ. श्रीमती मुन्नी जैन, अधिकार- सातवाँ, पृ.- ३५०, भारतवर्षीय अनेकांत विद्वत् परिषद्, प्रथम संस्करण : १६६६. ७७१ मूलाचार, सम्पादकद्वयः डॉ. फूलचन्द्र जैन एवं डॉ. श्रीमती मुन्नी जैन, अधिकार- सातवाँ, पृ.- ३३५, भारतवर्षीय अनेकांत विद्वत् परिषद्, प्रथम संस्करण : १६६६. ७७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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