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साध्वी मोक्षरला श्री
सामायिक एवं प्रत्याख्यान का भंग होने पर क्या प्रायश्चित्त करना चाहिए? इसका भी इसमें उल्लेख हुआ है। तुलनात्मक अध्ययन
वर्धमानसरि ने इस विधि में षडावश्यकों का नामोल्लेख जिस क्रम से किया है, ठीक उसी प्रकार के क्रम का उल्लेख हमें दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों मे देखने को नहीं मिलता है। वर्धमानसूरि ने कायोत्सर्ग के बाद प्रत्याख्यान का उल्लेख किया है, जबकि दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में प्रत्याख्यान के बाद कायोत्सर्ग का उल्लेख हुआ है।
श्वेताम्बर परम्परा की भाँति हमें दिगम्बर-परम्परा में आवश्यक विधि से सम्बन्धित सभी सूत्रों का उल्लेख नहीं मिलता है। यद्यपि दिगम्बर-परम्परा के यापनीय सम्प्रदाय में हमें श्वेताम्बर-परम्परा के आवश्यक सूत्र की भाँति ही "प्रतिक्रमण ग्रन्थत्रयी" ग्रन्थ मिलता है, जो कि श्वेताम्बर-परम्परा के आवश्यकसूत्र के सूत्र-पाठ से बहुत ही सन्निकटता रखता है, किन्तु यह पुस्तक अनुपलब्ध होने के कारण इस विषय में हम ज्यादा कुछ कहने में समर्थ नहीं हैं। दिगम्बर-परम्परा के मूलाधार ग्रन्थ के षडावश्यक सम्बन्धी अधिकार में जो उल्लेख मिले हैं, उन्हीं को आधार मानते हुए उसकी तुलना हम यहाँ आचारदिनकर में वर्णित आवश्यक-विधि से करेंगे।
वर्धमानसूरि ५३ के अनुसार सामायिक के दो भेद हैं-(१) सर्वविरति सामायिक और (२) देशविरति सामायिक। दिगम्बर-परम्परा में भी सामायिक के इन दोनों भेदों का उल्लेख मिलता है। इसके साथ ही दिगम्बर-परम्परा में हमें सामायिक के (१) नाम (२) स्थापना (३) द्रव्य (४) क्षेत्र (५) काल एवं (६) भाव इन छ: भेदों का उल्लेख भी मिलता है।७५४ कहीं-कहीं इनमें से चार भेदों का उल्लेख मिलता है। वर्धमानसूरि ने सामायिक आवश्यक में करेमिभंतेसूत्र एवं परमेष्ठीमंत्र का अन्तर्भाव किया है तथा उनकी विस्तृत व्याख्या भी की है। दिगम्बर-परम्परा में सामायिक आवश्यक में किन-किन सूत्रों का अन्तर्भाव किया गया है, इसका हमें उल्लेख नहीं मिलता है।
७५२ जैनधर्म में यापनीय सम्प्रदाय, लेखक- डॉ. सागरमल जैन, पृ.- १६०, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, प्रथम
संस्करण : १६६६. ७५३ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय- अड़तीसवाँ, पृ.- २६१, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण :
१६२२. ५४ मूलाचार, सम्पादकद्वयः डॉ. फूलचन्द्र जैन एवं डॉ. श्रीमती मुन्नी जैन, अधिकार- सातवाँ, पृ.-३३४, भारतवर्षीय अनेकांत विद्वत परिषद, प्रथम संस्करण : १६६६.
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