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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
संलेखनाव्रत का आराधक ही माना जाता है। शास्त्रानुसार व्रत का पालन करते हुए कदाच् पूर्वकर्मों के कारण उसे रोग या शरीर में पीड़ा उत्पन्न हो जाए, तो वह यथासंभव चिकित्सा की इच्छा न रखे, किन्तु साधक के व्यथित होने पर प्रधान मुनि का यह कर्त्तव्य है कि वह विषम उपायों से भी उसके उस रोग के उपशमन का प्रयास करें, क्योंकि उसके अभाव में जिनशासन साधकों से शून्य हो जाएगा। कदाचित् उपचार से भी रोग का निरोध न हो, तो मुनि को अपनी आयुष्य पूर्ण होने का समय जानकर अन्त्य - आराधना करनी चाहिए।
अन्त्य - आराधना हेतु ग्लान के समक्ष चतुर्विधसंघ को एकत्रित करे तथा ग्लान को जिनबिम्ब के दर्शन करवाकर उसे देववन्दन एवं श्रुतदेवता आदि की स्तुति तथा कायोत्सर्ग करवाएं। तत्पश्चात् ग्लान उत्तम आराधना हेतु वासक्षेप करने के लिए निवेदन करे। ऐसा कहे जाने पर आराधना कराने वाले आचार्य उसके सिर पर वासक्षेप निक्षिप्त करें। तदनन्तर ग्लानमुनि आलोचना करके समस्त जीवराशि से क्षमा याचना करे। इसके साथ ही ग्लानमुनि चतुर्विधसंघ से किस प्रकार से क्षमापना करे तथा किस प्रकार से अपने सम्यक्त्व को पुष्ट करे ? - इसका भी उल्लेख मूलग्रन्थ में किया गया है। तत्पश्चात् निर्यापक आचार्य ग्लान मुनि को सर्वविरति सामायिक दण्डक एवं पंचमहाव्रतों के दण्डक का तीन बार उच्चारण कराए। तदनन्तर चार शरण स्वीकार करके ग्लानमुनि अठारह पापस्थानकों का पूर्ण रूप से त्याग करे तथा सागार या अनगार अनशन का प्रत्याख्यान करे । मूलग्रन्थ में इन दोनों प्रत्याख्यानों के पाठ भी दिए गए हैं। तदनन्तर आराधना कराने वाला आचार्य उसे किस प्रकार एवं कौनसा पाठ सुनाए - इसका उल्लेख किया गया है । इस पाठ के माध्यम से उसे संसार की असारता एवं अनित्यता का बोध कराया जाता है। तत्पश्चात् यह बताया गया है कि समाधिमरण होने पर श्रावकों को संघपूजादि महोत्सव करने चाहिए। तदनन्तर आचारदिनकर में मुनि के मृतदेह की परिष्ठापनिका विधि का उल्लेख किया गया है। इसके लिए सर्वप्रथम तीन प्रकार की स्थंडिल भूमि - (१) दूरस्थ ( २ ) मध्यम दूरी की एवं (३) निकटस्थ की गवेषणा करें। ग्लानमुनि की मृत्यु कदाचित् रात में हो जाए, तो रात्रिजागरण करना चाहिए। रात्रिजागरण के समय बाल, कायर और अगीतार्थ मुनियों को मृतदेह के पास नहीं रहना चाहिए। उस समय कुशल और गीतार्थ मुनि को ही मृतदेह के समीप रहना चाहिए। रात्रि में यदि मृतदेह में कोई व्यंतर आदि देव का प्रवेश हो जाए, तो मुनि क्या क्रिया करे, इसका भी मूलग्रन्थ में उल्लेख हुआ है। इसके साथ ही यह भी बताया गया है कि पैंतालीस मुहूर्त के नक्षत्रों में मुनि का देहावसान हो, तो मृत साधु के शव के पास में साधुवेश सहित कुश के दो पुतले रखें। इसी प्रकार अन्य नक्षत्रों में ग्लान की मृत्यु होने पर क्या करना चाहिए
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