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साध्वी मोक्षरला श्री
वर्धमानसूरि ने इस प्रकरण में इस विषय का भी उल्लेख किया है कि देवी को, गणपति को, क्षेत्रपाल आदि को किन-किन वस्तुओं से बलि देनी चाहिए तथा नंद्यावर्त्त- महापूजन में देवी-देवता आदि को किस प्रकार से बलि दी जाती है। दिगम्बर-परम्परा में इनमें से कुछ बातों का उल्लेख मिलता है, जैसेशांतिविधान में नवग्रह आदि को नैवेद्य के रूप में बलि प्रदान की जाती है। इसी प्रकार बत्तीस इन्द्रों, सोलह विद्यादेवियों आदि को भी नैवेद्य प्रदान करने के उल्लेख मिलते हैं, किन्तु गणपति आदि को किन-किन वस्तुओं से बलि प्रदान करें- इसका उल्लेख हमें वहाँ नहीं मिलता है। वैदिक-परम्परा में नंद्यावर्त्त-पूजन में से कुछ देवी-देवताओं, जिनमाता एवं पिता को छोड़कर शेष सभी को किन वस्तुओं से एवं कैसे बलि प्रदान करें? इनका हमें उल्लेख मिलता है, जैसेबौधायनगृह्यसूत्र १२ में गणेश को अपूप एवं मोदक की आहूति (बलि) प्रदान करने के लिए कहा गया है।
शाकिनी, भूत, वेताल, ग्रह, योगिनियों, प्रेत, पिशाच, राक्षस आदि को कहाँ एवं किन वस्तुओं की बलि दें? इसका भी आचारदिनकर में उल्लेख मिलता है। इसके साथ ही वहाँ निधि (खजाना) प्राप्त होने की दशा में निधिदेवता को भी उचित बलि देने का निर्देश दिया गया है। निधि देवता द्वारा अपने माध्यम से विशेष बलि वस्तु न मांगने पर किस प्रकार से निधि ग्रहण करें- इसका भी इसमें उल्लेख किया गया है। विगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में हमें इस प्रकार का उल्लेख देखने को नहीं मिला। वैदिक- परम्परा में भूतादि को बलि देने के उल्लेख मिलते है। प्रतिष्ठाममूख में हमें इस सम्बन्ध मैं जो उल्लेख मिलता है, वह इस प्रकार है- "इस लोक में बलि की आकांक्षा करने वाले जो भी भूतादि यहाँ आए हुए हैं, उन्हें बार-बार नमस्कार करके बलि देता हूँ," किन्तु वैदिक-परम्परा के ग्रन्थों में हमें यह उल्लेख देखने को नहीं मिला कि निधि प्राप्त होने की दशा में निधि देवता को किस प्रकार बलि दें।
इस प्रकार हम देखते हैं कि बलिविधान के सम्बन्ध में तीनों परम्पराओं की अपनी-अपनी अवधारणा है, जिनके फलस्वरूप हमें आंशिक वैविध्य दिखाई देता है।
७१२ धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग), डॉ. पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.- १८६, उत्तरप्रदेश हिन्दी
संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८०. "प्रतिष्ठामयूख, अनु.- डॉ. महेशचन्द्र जोशी, पृ.- ३०, कृष्णादास अकादमी, वाराणसी, प्रथम संस्करण, १६६६.
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