Book Title: Jain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 327
________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 323 चाहिए। पंचाशकप्रकरण६४८ में भूमि शुद्धि करने का तो विधान मिलता है, किन्तु अन्य बातों का उल्लेख नहीं मिलता है। दिगम्बर-परम्परा के प्रतिष्ठापाठ६४६ आदि में भी क्षेत्रशुद्धि, प्रतिष्ठा हेतु राजानुज्ञा, मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविकाओं को निमंत्रित करने आदि के उल्लेख मिलते हैं। वैदिक-परम्परा के ग्रन्थों में भी मंडपार्थ भूशुद्धि आदि की चर्चा करने के पश्चात प्रतिष्ठा एवं प्रतिष्ठा हेतु उपयोगी सामग्रियों की विस्तृत चर्चा है। श्वेताम्बर परम्परा के अन्य ग्रन्थों यथावास्तुसारप्रकरण, कल्याण कलिका आदि में भी जिनप्रतिमाप्रतिष्ठा के मुहूर्त आदि की इतनी ही विस्तृत चर्चा मिलती है, किन्तु प्रतिष्ठा हेतु उपयोगी सामग्री का इतना विस्तृत उल्लेख हमें श्वेताम्बर परम्परा के विधि-विधान सम्बन्धी प्राचीन ग्रन्थों में नही मिलता है, यद्यपि परवर्ती ग्रन्थों में इनका उल्लेख अवश्य मिलता है। आचारदिनकर में ही हमें इन दोनों विषयों की विस्तृत जानकारी मिलती है। दिगम्बर-परम्परा के प्रतिष्ठापाठ ६५० नामक ग्रन्थ में भी प्रतिष्ठा उपयोगी सामग्री एवं प्रतिष्ठा-मुहूर्त सम्बन्धी सूचनाएँ उपलब्ध है। प्रतिष्ठासारोद्धार में हमें इन विषयों की चर्चा नहीं मिलती है। वैदिक-परम्परा के अति प्राचीन ग्रन्थों अग्निपुराण आदि में तो हमें इससे सम्बन्धित कोई विशेष उल्लेख प्राप्त नहीं होते है, किन्तु परवर्ती ग्रन्थों में प्रतिष्ठा उपयोगी सामग्री एवं प्रतिष्ठा-मुहूर्त के सम्बन्ध में कुछ उल्लेख मिलते है, जैसे कि प्रतिष्ठामयूख ५१ में रत्नाष्टक, धात्वाष्टक (हरितालादि), बीजाष्टक, धात्वाष्टक (सुवर्णादि), सप्तमृत्तिका, सर्वोषधी, सप्त धान्य, आदि प्रतिष्ठा उपयोगी सामग्री का उल्लेख मिलता है। ज्ञातव्य है कि प्रतिष्ठा हेतु उपयोगी इन सामग्री की सूची आचारदिनकर में भी वर्णित है। ___आचारदिनकर के अनुसार ६५२ जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा हेतु पहले शुद्धिसंस्कार से युक्त लघुबिम्ब को चैत्यगृह में पूजा हेतु लाएं। तत्पश्चात् स्थिरबिम्ब को पंचरत्न तथा कुम्भकार के चक्र की मृत्तिका सहित स्थापित करें तथा चलबिम्ब के नीचे पवित्र नदी की बालू एवं मूल सहित एक बालिश्त मात्र दर्भ रखकर बिम्ब को स्थापित करें। फिर निर्दिष्ट जलाशयों की विधिपूर्वक पूजा करके जलाशयों का जल लाएं। ग्रन्थकार ने यहाँ जलाशय-पूजा के मंत्र का भी ६४६ पंचाशकप्रकरण, अनु.- डॉ. दीनानाथ शर्मा, प्रकरण-८, प्र.-१३७, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, प्रथम संस्करण १६६७. ६४६ प्रतिष्ठापाठ, जयसेनाचार्यकृत, पृ.- ४६-५२, सेठ हीराचंद नेमचंद डोशी, मंगलवार पेठ, शोलापुर, वी.सं. २४५२ ६५ प्रतिष्ठापाठ, जयसेनाचार्यकृत, पृ.-११, सेठ हीराचंद नेमचंद डोशी, मंगलवार पेठ, शोलापुर, वी.सं.- २४५२ "प्रतिष्ठामयूख,अनु.- डॉ. महेशचन्द्र जोशी, पृ.- ७-१०, कृष्णादास अकादमी, वाराणसी, प्रथम संस्करण, १६६६. ६५२आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-तेंतीसवाँ, पृ.-१५०, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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