Book Title: Jain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 293
________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन महत्तरा के पद पर योग्य साध्वी का चयन किया जाना परमावश्यक है। योग्य साध्वी ही अपने कार्यक्षेत्र को सम्यक् प्रकार से संभाल सकती है। साध्वीसंघ का संचालन करते समय ऐसे कितने ही प्रसंग उपस्थित होते हैं, जिनका निर्णय तत्काल लेना आवश्यक होता है और यह कार्य योग्य साध्वी ही कर सकती है, सिद्धांतवेत्ता, बुद्धिशाली एवं नीति में निपुण साध्वी ही संघ के हिताहित का विचार करके तत्काल निर्णय ले सकती है, अतः साध्वी- समुदाय के संचालन हेतु योग्य साध्वी को प्रमुख पद पर स्थापित किया जाना आवश्यक है। साध्वियों की सुरक्षा व्यवस्था हेतु भी यह पद महत्वपूर्ण है। जिस प्रकार परकोटा नगर की रक्षा करता है, उसी प्रकार महत्तरा साध्वी- समुदाय की रक्षा करती है । कुछ समुदाय में एक ही आचार्य होता हैं, अतः यह सम्भव नहीं हो पाता है, कि वह आचार्य सभी जगह सभी कार्यों में अपनी उपस्थिति दे सके। अतः उन आचार्य के कुछ कार्यों का विभाजन करने हेतु भी यह पद आवश्यक है । अहोरात्रचर्या विधि 289 अहोरात्रिचर्या - विधि का स्वरूप अहोरात्रिचर्या शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- अहोरात्रि + चर्यां अहोरात्र का तात्पर्य है- दिवस एवं रात्रि तथा चर्या का तात्पर्य है- आचरण विधि | संक्षेप में अहोरात्र चर्या का तात्पर्य दिवस एवं रात्रि सम्बन्धी दैनिक क्रियाओं की आचरण-विधि से है। प्रत्येक व्यक्ति की कुछ न कुछ दैनिक चर्या होती है, जिसे वह नियमित रूप से करता है। वह प्रतिदिन अपनी दैनिकचर्या को उसी प्रकार करे ही, यह उसके लिए आवश्यक नहीं वरन् ऐच्छिक होता है, किन्तु मुनि - जीवन की कुछ विशिष्ट चर्याएँ होती हैं, जिनका आचरण करना मुनि के लिए अनिवार्य होता है। मुनि - जीवन से सम्बन्धित दिवस - रात्रि की क्या - क्या चर्याएँ हैं, उनकी आचरणा मुनि कैसे एवं किस समय करे - इसका विवेचन इस विधि में किया गया है। विषय की प्रासंगिकता को देखते हुए ग्रन्थकार ने जिनकल्पी एवं स्थविरों के उपकरणों की भी चर्चा की है। उन उपकरणों का जघन्यतः, मध्यमतः एवं उत्कृष्टतः कितना परिमाण होना चाहिए? इसका भी इसमें विस्तृत उल्लेख किया गया है। दिगम्बर - परम्परा में मुनि की अहोरात्रिचर्या के कुछ उल्लेख अवश्य मिलते हैं, किन्तु उसकी विधि का विस्तृत रूप हमें देखने को नहीं मिला। हाँ, आचारदिनकर में वर्णित दिवस - रात्रि सम्बन्धी विधि-विधानों के कुछ विषयों का दिगम्बर- परम्परा के ग्रन्थों में यत्र-तत्र उल्लेख अवश्य है। इसी प्रकार वैदिक - परम्परा में भी हमें संन्यासियों की दिवस एवं अहोरात्रि सम्बन्धी चर्या का कुछ वर्णन तो मिलता है, यथा- भिक्षाटन, भिक्षापात्र आदि से सम्बन्धित विषयों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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