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साध्वी को दीक्षा प्रदान करने की विधि
साध्वी को दीक्षा प्रदान करने की विधि का स्वरूप
में
आचारदिनकर के सत्ताईसवें उदय (अध्याय) वर्णन किया गया है। सामान्यतया जिस प्रकार पुरुष को उसी प्रकार स्त्रियों को भी दीक्षा प्रदान की जाती है। विशेष अन्तर नहीं है, किन्तु पुरुष की अपेक्षा स्त्री को दीक्षा प्रदान करते समय जिन-जिन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, इसका इस उदय में विशेष रूप से वर्णन किया गया है। सर्वप्रथम यह बताया गया है कि कितने प्रकार की स्त्रियाँ दीक्षा ग्रहण करने के अयोग्य होती हैं, दीक्षा के पूर्व उन्हें किन-किन की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक होता है- इन सबका बहुत संक्षिप्त, किन्तु सुन्दर विवेचन ग्रन्थकार ने इस ग्रन्थ में किया है। श्वेताम्बर - परम्परा के अतिरिक्त दिगम्बर - परम्परा में भी स्त्रियों को साध्वी- आर्यिकादीक्षा प्रदान की जाती है, यह बात भिन्न है कि वे उनकी दीक्षा को उपचार- दीक्षा मानते हैं। उनके अनुसार स्त्री परमार्थतः महाव्रत ग्रहण करने की अधिकारिणी नहीं है, क्योंकि वह नग्न नहीं हो सकती है और दिगम्बर - परम्परा के अनुसार नग्न हुए बिना अपरिग्रह महाव्रत धारण नहीं किया जा सकता है, अतः स्त्री को व्रतारोपण उपचार से होता है, दिगम्बर - परम्परा में स्त्री की दीक्षाविधि का कोई अलग से उल्लेख हमें देखने को नहीं मिला, यद्यपि दिगम्बर-ग्रन्थों में अनेक स्त्रियों द्वारा साध्वी या आर्यिकादीक्षा ग्रहण करने के उल्लेख मिलते है। ज्ञातव्य है कि जैन- परम्परा की अचेल धारा का एक सम्प्रदाय, जिसे यापनीय सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है, स्त्री दीक्षा का स्पष्ट रूप से समर्थन करता है और स्त्री में महाव्रतारोपण भी स्वीकार करता है । वैदिक-परम्परा में नारियों के संन्यासाश्रम ग्रहण करने के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट विचार नहीं मिलते हैं। कुछ वैदिक - विद्वान् स्त्री द्वारा संन्यासाश्रम को स्वीकार करना उचित मानते हैं, तो कुछ विद्वान् उसे पाप समझते है । ५५६ किन्तु हिन्दू-ग्रन्थों में अनेक साध्वियों या संन्यासिनियों के उल्लेख मिलते है, लेकिन स्त्री द्वारा संन्यासाश्रम ग्रहण करने की स्वतंत्र विधि हमें वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में भी देखने को नहीं मिली।
साध्वी मोक्षरला श्री
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स्त्री - दीक्षा दीक्षा प्रदान दोनों की
प्रत्येक विधि-विधान का कुछ न कुछ प्रयोजन होता है और उसी प्रयोजन से अभिभूत होकर जनसामान्य द्वारा वे विधि-विधान किए जाते है । भगवान् महावीर के जीवन के आरम्भिक काल में स्त्रियों को समाज में पूर्ण सम्मान का
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की विधि का की जाती है, दीक्षा - विधि में
५५६ धर्मशास्त्र का इतिहास, पांडुरंग वामन काणे (प्रथम भाग ), अध्याय- २८, पृ. ४६७, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०.
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