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साध्वी मोक्षरला श्री
पक्ष पर विचार करके ही यह संस्कार प्रारम्भ हुआ होगा- ऐसा भी हम मान
सकते हैं।
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वर्धमानसूरि के आचारदिनकर में विधि-विधानसहित यह संस्कार करने का उल्लेख मिलता है । दिगम्बर - परम्परा के आदिपुराण में हमें इस नाम के संस्कार का कोई उल्लेख नहीं मिलता है, किन्तु जैन - संस्कार - विधि में चौल-संस्कार के समय कर्णछेद करने का निर्देश किया गया है, परन्तु इसे स्वतन्त्र संस्कार के रूप में उल्लेखित नहीं किया गया है। वैदिक-' 5- परम्परा के अन्तर्गत यह संस्कार करने का विधान मिलता है।
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कर्णवेध-संस्कार गृह्यसूत्रों में वर्णित नहीं है, परन्तु कालान्तर वाली स्मृतियों एवं पुराणों में ही उल्लेखित हुए हैं " तथा परवर्ती वैदिक - विद्वानों ने इसे संस्कार के रूप में स्वीकार कर इसका विधि-विधानसहित विवेचन किया है। इस प्रकार वर्धमानसूरि के आचारदिनकर में एवं वैदिक - परम्परा में इसे संस्कार के रूप में स्वीकार किया गया है।
आचारदिनकर के अनुसार यह संस्कार शुभ वर्ष, मास, दिन आदि देखकर कुल - परम्परा के अनुसार बालक के तीसरे, पाँचवें या सातवें वर्ष में किया जाता है। वैदिक - परम्परा में इस संस्कार के समय के सम्बन्ध में विभिन्न मत हैं। बृहस्पति के अनुसार " यह संस्कार शिशु के जन्म के पश्चात् दसवें, बारहवें या सोलहवें दिन करना चाहिए। गर्ग के अनुसार ४ छठवें, सातवें, आठवें मास में यह संस्कार करना चाहिए, किन्तु कात्यायनसूत्र कर्णवेध संस्कार के उपयुक्त समय के रूप में शिशु के तृतीय या पाँचवें वर्ष का विधान करता है, श्वेताम्बर - परम्परा में निर्दिष्ट समय का समर्थन भी करता हैं।
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३१५
जो
३० जैन संस्कार विधि, नाथूलाल जैन शास्त्री, अध्याय- २, पृ. १२, श्री वीर निर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन समिति, गोम्मटगिरी, इन्दौर, पांचवीं आवृत्ति : २०००.
धर्मशास्त्र का इतिहास ( प्रथम भाग ), पांडुरंग वामनकाणे, अध्याय-६, पृ. १७८, उत्तरप्रदेश, हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८०.
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३१२ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथमविभाग), उदय-दसवाँ, पृ. १७, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे सन् १६२२. ३१३ देखे धर्मशास्त्र का इतिहास ( प्रथम भाग ), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय - ६, पृ. २०१, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०.
३१४ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय - षष्ठ (षष्ठ परिच्छेद), पृ. १३०, चौखम्भा विद्या भवन, पांचवाँ संस्करण १६६५
३१५ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (षष्ठ परिच्छेद), पृ. १३०, चौखम्भा विद्या भवन, पांचवाँ संस्करण १६६५
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