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साध्वी मोक्षरला श्री
को खाने के लिए खुले स्थान में छोड़ना, परन्तु वर्धमानसरि ने जिस प्रकार से मृत्यु के पश्चात् की क्रियाओं का उल्लेख किया है, वैसा उल्लेख हमारी जानकारी के अनुसार दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में नहीं मिलता।
वैदिक-परम्परा में अन्त्येष्टि-संस्कार का बहुत विस्तार से वर्णन किया गया है। वैदिक-परम्परा के अनुसार ऐसे कितने ही कृत्यों को उल्लेख किया है, जो जैन-परम्परा में देखने को नहीं मिलते, जैसे - अनुस्तरणीक्रिया के माध्यम से गाय या बकरे की बली देना, या उसका दान देना, उदककर्म करना, शान्तिकर्म करना, पिण्डदान देना आदि।४४०
___ वर्धमानसरि ने मृत्यु के पश्चात कितने दिन का सूतक हो, गर्भपात में कितने दिन का सूतक हो, बालक का कितने दिन का सूतक हो - इसका भी उल्लेख किया है।४१ वैदिक-परम्परा के ग्रन्थों में भी अशौच सम्बन्धी उल्लेख बहुत विस्तार से मिलते हैं। उसमें अशौच का काल, मृतक की जाति, आयु और लिंगभेद के अनुसार बताया गया है। गृह्यसूत्रों के अनुसार अशौच की साधारण अवधि दस दिन की है, परन्तु वैश्यों एवं शूद्रों के लिए अशौच की अवधि क्रमशः पन्द्रह दिन और एक मास है।४२ परवर्ती स्मृतियों के अनुसार विशिष्ट परिस्थितियों में अशौच से पूर्णतः मुक्त भी हुआ जा सकता है। दो वर्ष से कम आयु के शिशु के लिए मात्र उसके माता-पिता को ही एक या तीन रात्रि का अशौच लगता है। इस प्रकार के अन्य मत भी मिलते हैं, जिनका वर्णन स्थानाभाव के कारण यहाँ कर पाना संभव नहीं है। दिगम्बर-परम्परा में पं. नाथूलाल शास्त्री ने जैन-संस्कार-विधि में मृत्यु के समय एवं मृत्यु के बाद की जाने वाली क्रियाओं का संक्षिप्त रूप में उल्लेख करते हुए सूतक सम्बन्धी विचारों को भी प्रस्तुत किया
वर्धमानसूरि ने अपने-अपने वर्ण के अनुसार सूतक के अन्त में कल्याणरूप परमात्मा की स्नात्रपूजा एवं साधर्मिकवात्सल्य करने का निर्देश दिया है। वैदिक-परम्परा में परमात्मा की पूजा करने सम्बन्धी उल्लेख तो नहीं मिलते हैं, किन्तु ब्राह्मणभोज का उल्लेख अवश्य मिलता है। वैदिक-परम्परा में इसी संस्कार
४४० हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-दशम, पृ.-३१५-३३४, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ ___ संस्करण : १६६५ ४' आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-सोलहवाँ, पृ.-७०, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन्
१९२२ ४४२ हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-दशम, पृ.-३२५, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण
:१६६५
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