________________
240
साध्वी मोक्षरत्ना श्री
उपस्थापना-विधि
उपस्थापना-विधि हेतु सर्वप्रथम नंदी विधि सहित आवश्यकसूत्र, दशवैकालिकसूत्र के योगोद्वहन कराएं। मण्डलीप्रवेश एवं योगोद्वहन के मध्य दशवकालिक के तीन अध्ययन के तीन आयम्बिल होने पर ही नंदी एवं उपस्थापनाविधि करें। उपस्थापनाविधि में सर्वप्रथम मुहूर्त सम्बन्धी निर्देश दिए गए है। तत्पश्चात् यह बताया गया है कि शिष्य के लिए वस्त्र संस्तारक आदि मुनिवेश सम्बन्धित सभी उपकरण नए होने चाहिए। उपस्थापना की विधि के लिए चैत्य में या उपाश्रय में समवसरण की स्थापना करें। तदनन्तर गुरु शिष्य को तीन बार परमेष्ठीमंत्र का उच्चारण करवाकर समवसरण की तीन प्रदक्षिणा करवाए। तत्पश्चात् गुरु वासक्षेप को अभिमंत्रित करे। इसके बाद शिष्य महाव्रतों के आरोपणार्थ एवं नंदीक्रिया करने हेतु वासक्षेप एवं चैत्यवंदन करवाने के लिए निवेदन करे। तत्पश्चात् गुरु शिष्य को वासक्षेप करके चैत्यवंदन वगैरह करवाए तथा तीन बार नंदीसूत्र का पाठ सुनाए। मूलग्रन्थ में नंदीसूत्र का पाठ भी दिया गया है। तत्पश्चात् गुरु एवं शिष्य महाव्रत के आरोपणार्थ कायोत्सर्ग करे। तदनन्तर शिष्य विशिष्ट मुद्रा को धारण करके क्रमशः पाँच महाव्रतों एवं छठवें रात्रिभोजन-परित्यागवत का तीन-तीन बार उच्चारण करे। शिष्य किस पाठ के माध्यम से इन व्रतों का ग्रहण करे, इसका मूलग्रन्थ में विस्तार से वर्णन किया गया है।
तत्पश्चात् लग्नवेला के आने पर शिष्य पुनः कहे "इस प्रकार मैनें पाँच महाव्रतों और छठवें रात्रिभोजन-विरमणव्रत को आत्महित के लिए अंगीकार करके उपसम्पदा ग्रहण की है।" फिर गुरु पुनः वासक्षेप एवं अक्षत अभिमंत्रित करके क्रमशः साधुओं एवं श्रावकों को दे। तदनन्तर खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन करने के पश्चात् मुनि संघ शिष्य के सिर पर वासक्षेप एवं श्रावकवर्ग अक्षत निक्षिप्त करें। तत्पश्चात् शिष्य महाव्रतों के स्थिरीकरण हेतु कायोत्सर्ग करे, फिर दीक्षापर्याय के क्रम से साधुओं को वन्दन करे। फिर शिष्य के नामकरण की विधि करें। उपस्थापना के दिन शिष्य आयम्बिल करे तथा उसके बाद भी चार आयम्बिल करे।
__विधि के अन्त में सप्तमण्डली का नामोल्लेख करते हुए इन सप्तमण्डलियों में प्रवेश पाने हेतु सात आयम्बिल किए जाते हैं- ऐसा उल्लेख किया गया है। इसी विधि में आवश्यक एवं दशवैकालिकसूत्र का अध्ययन करवाया जाता है। अल्पबुद्धि वाले शिष्य की भी दशवैकालिक के चार अध्ययनों के बिना उपस्थापना नहीं होती है- ऐसा उल्लेख मूल ग्रन्थ में है। एतदर्थ विस्तृत जानकारी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org