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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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तथा उसके बाद उसे महाव्रतों का आरोपण करवाया जाता है। आचारदिनकर में ग्रन्थकार ने इस विधि का उल्लेख करते समय इस बात का भी उल्लेख विशेष रूप से किया है कि महाव्रतों को ग्रहण करते समय शिष्य किस प्रकार से मुखवस्त्रिका एवं रजोहरण को धारण करे। ५ दिगम्बर-परम्परा में दीक्षादान के पश्चात्, अर्थात् लिंगदान के पश्चात् पंचमहाव्रत, पाँच समिति, पाँचों इन्द्रियों को वश में करना, पृथ्वी पर सोना, इत्यादि उत्तरगुणों का आरोपण किया जाता है,६६ किन्तु महाव्रतों को ग्रहण करते समय मुनि किस मुद्रा में खड़ा रहे- इसका उल्लेख हमें दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में देखने को नहीं मिलता है।
वर्धमानसरि के अनुसार महाव्रतों का आरोपण करने के पश्चात मुनि के नाम की उद्घोषणा की जाती है। यह उद्घोषणा किस विधि से करनी चाहिए? इसका भी उल्लेख आचारदिनकर में किया गया है।४६७ दिगम्बर-परम्परा में नामकरण की क्रिया महाव्रतों के उच्चारण से पूर्व की जाती है, किन्तु वहाँ इसकी क्या विधि है? इसका उल्लेख हमें नहीं मिलता है।
वर्धमानसूरि ने उपस्थापना की जिस विधि का वर्णन किया है, वह विधि श्वेताम्बर-परम्परा के अन्य ग्रन्थों जैसे पंचवस्तु, विधिमार्गप्रपा, तिलकाचार्य विरचित सामाचारी, श्री चन्द्रविरचित सामाचारी आदि में भी मिलती है। सामान्यतः तो इन सब में वर्णित विधि प्रायः समान ही है, लेकिन कहीं-कहीं कुछ आंशिक अंतर है। वह अपनी-अपनी गच्छ-परम्परा के आधार पर है। फिर भी वर्धमानसूरि ने प्रायः सभी मतों के समन्वय का प्रयास किया है। उपसंहार
इस तुलनात्मक विवेचन के पश्चात् इस संस्कार की उपादेयता के सम्बन्ध में भी कुछ विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है। इस संस्कार के माध्यम से मुनि को पंच महाव्रतरूप चारित्र का ग्रहण करवाया जाता है तथा सप्तमण्डली, आवश्यकसूत्र एवं दशवैकालिकसूत्र के योगोद्वहन करवाए जाते है। आवश्यकसूत्र एवं दशवैकालिकसूत्र दोनों- आगमग्रन्थ हैं। इन दोनों आगमों का सम्यक् अध्ययन मुनि-जीवनचर्या के सम्यक् परिपालन हेतु आवश्यक है, क्योंकि जब तक वह आवश्यकसूत्र एवं दशवैकालिकसूत्र के अर्थ सम्यक् प्रकार से नहीं जानता है, तब तक उसकी क्रिया मात्र कायिक क्रिया ही होती है तथा वह सम्यक् प्रकार से
५ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-बीसवाँ प.-९०, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२.
आदिपुराण, जिनसेनाचार्य अन.-डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-उनचालीसवाँ, प्र.-२७६ भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण २००.. ६७ आचारदिनक., वर्धमानसूरिकृत, उदय-बीसवाँ पृ.-८१, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२.
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