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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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परन्तु उनमें इसकी क्रियाविधि का कोई उल्लेख हमें दृष्टिगत नहीं होता है। अतः सर्वप्रथम हम जैनधर्म की श्वेताम्बर एवं दिगम्बर-परम्पराओं में इस सम्बन्ध में क्या अवधारणा है, उन्हें ही स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे। संस्कारकर्ता -
वर्धमानसूरि के अनुसार व्रतारोपण-संस्कार विशिष्ट गुणों से युक्त निर्ग्रन्थमुनि (यतिगुरु) द्वारा ही करवाया जाता है। निर्ग्रन्थगुरु की वे विशिष्ट योग्यताएँ क्या हैं? इसका उल्लेख भी वर्धमानसूरि ने विस्तार से किया है। दिगम्बर-परम्परा में यह संस्कार आदिपुराण में निर्दिष्ट योग्यता को धारण करने वाले जैनद्विज या भट्टारक के द्वारा करवाया है। वैसे तो उस परम्परा में भी यह संस्कार निर्ग्रन्थमुनि द्वारा ही सम्पन्न होता था, किन्तु कालान्तर में निर्ग्रन्थमुनि परम्परा विच्छिन्न होने से यह कार्य उनके प्रतिनिधि के रूप में भट्टारक करने लगे।
__ वर्धमानसूरि ने आचारदिनकर में व्रतारोपण की निम्न विधि प्रस्तुत की है व्रतारोपण-संस्कार की विधि -
इस विधि के अन्तर्गत वर्धमानसूरि ने सर्वप्रथम इस संस्कार के महत्व का प्रतिपादन करते हुए यह बताया है कि व्रतारोपण-संस्कार निर्ग्रन्थयति द्वारा ही करवाया जाता है। तदनन्तर मूलग्रन्थ में निर्ग्रन्थगुरु के गुणों का उल्लेख किया गया है। तत्पश्चात् यह बताया गया है कि पित-परम्परा में मान्य निर्ग्रन्थगुरु को, या उसके अभाव में इन गुणों से युक्त अन्य गच्छ आदि के निर्ग्रन्थगुरु के प्राप्त होने पर ही गृहस्थ को व्रतारोपण की विधि करनी चाहिए तथा जो गृहस्थ पूर्व कथित इन चौदह संस्कारों से सुसंस्कृत है, वही गृहीधर्म को धारण करने के योग्य है। तदनन्तर व्रतधारण करने के योग्य श्रावक के २१ सामान्य गुणों तथा ३५ मार्गानुसारी गुणों का उल्लेख किया गया है। तत्पश्चात् व्रतारोपण-संस्कार-विधि का उल्लेख किया गया है।
वर्ष, मास, दिन, नक्षत्र, लग्न के शुद्ध होने पर विवाह, दीक्षा एवं प्रतिष्ठा के समान ही शुभलग्न में गृहस्थगुरु उसके घर में शान्तिक-पौष्टिककर्म करे। तत्पश्चात् उपाश्रय आदि में योग्य स्थल पर समवसरण की रचना कर उसमें परमात्मा की प्रतिमा स्थापित करे। फिर श्रावक स्नान से पवित्र होकर अपने घर से महोत्सवपूर्वक उपाश्रय में आकर श्रावकयोग्य वेश को धारण करें तथा गुरु की बाईं और पूर्वाभिमुख होकर बैठे। तत्पश्चात् श्रावक गुरु की आज्ञा से नारियल, अक्षत और सुपारी को हाथ में रखकर परमेष्ठीमंत्र का उच्चारण करते हुए
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