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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
दोनों द्वारा
श्वेताम्बर एवं दिगम्बर - आगमग्रन्थों में गृहस्थ और मुनि संलेखना धारण करने सम्बन्धी विधि के उल्लेख मिलते हैं। वर्धमानसूरि ने भी संलेखनाव्रत को किस विधि से धारण करें - इसका विस्तृत वर्णन किया है। इस विधि के लिए वर्धमानसूरि ने किसी निश्चित नक्षत्र, तिथि, मुहूर्त आदि के सम्बन्ध में निर्देश नहीं दिया है, क्योंकि मृत्यु अवश्यम्भावी होकर भी अनियत है, वह कब आ जाए, किसी को पता नहीं हैं।
वर्धमानसूरि ने सर्वप्रथम इस संस्कार के स्थान के बारे में निर्देश दिया है, कि मुनि या गृहस्थ तीर्थंकर परमात्मा के जन्म आदि कल्याणकों के स्थान पर, या वन में, या पर्वत पर जीवजन्तु से रहित विशुद्ध बंजर भूमि पर या अपने घर में योग्य स्थान पर आमरण अनशन विधिपूर्वक ग्रहण करे।
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वर्धमानसूर के अनुसार इस इस संस्कार में नंदीक्रिया एवं संलेखना-आराधनाविधि की जाती है। संलेखना - आराधनाविधि के अनुसार सर्वप्रथम सम्यक्त्वदण्डक एवं द्वादश व्रतों का पुनर्प्रत्याख्यान (उच्चारण) करवाया जाता है, परन्तु इस संस्कार में नियमों को ग्रहण कराते समय " यावत् नियम पर्यन्त" के स्थान पर " यावत् जीवन पर्यन्त" का उच्चारण कराया जाता है। साधक सब जीवों से क्षमायाचना करता है एवं सर्वजीवों को क्षमा प्रदान करता है। साथ ही सुकृत की अनुमोदना करता हैं एवं दुष्कृत की आलोचना करता है । सर्वप्रथम मृत्यु को निकट जानकर श्रावक अपने पुत्रादि से धार्मिक अनुष्ठान कराता है । यथा - मंदिरों में पूजा, स्नात्र, ध्वजारोहण आदि। साथ ही वह साधक सर्वप्रथम चार शरण स्वीकार करके तथा अठारह पापस्थानक का त्याग करके यावज्जीवन हेतु अनशनव्रत को स्वीकार करता है । अन्त में पंचपरमेष्ठीमंत्र के स्मरण एवं श्रवण पूर्वक शरीर का त्याग करता है। वैदिक परम्परा में ये सब विधि-विधान देखने को नहीं मिलते। पूर्ववर्ती वैदिक - साहित्य में मृत्यु के बाद की क्रियाओं का ही उल्लेख मिलता है । मृत्यु के पूर्व अनुसृत प्रथाओं तथा क्रियाओं का विशद विवरण तो हिन्दू धर्मशास्त्रों में नहीं दिया गया है, ' परन्तु कहीं-कहीं इससे सम्बन्धित उल्लेख मिलते हैं। यथा " जब एक हिन्दू यह अनुभव करता है कि उसकी मृत्यु समीप आ गई है, तो वह अपने सम्बन्धियों और मित्रों को निमन्त्रित करता है और उनसे मित्रता से बातचीत करता है। साथ ही अपने भावी कल्याण के लिए
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आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत ( प्रथम विभाग), उदय- सोहलवाँ, पृ. ६६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे सन्
१६२२
हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय- दशम, पृ. ३११, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पाँचवाँ संस्करण : १६६५
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