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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
इस प्रकार तीनों परम्पराओं में इस संस्कार के विधि-विधान में आंशिक भिन्नता एवं आंशिक समानता परिलक्षित होती है। परम्पराओं के भेद के कारण कुछ विधियाँ ऐसी भी हैं, जो मात्र एक ही परम्परा से सम्बन्ध रखती हैं, दूसरी परम्परा से नहीं, किन्तु परम्परा - भेद के कारण ऐसा होना स्वाभाविक ही है ।
उपसंहार
इस संस्कार का तुलनात्मक विवेचन करने के पश्चात् जब हम इस संस्कार की उपादेयता के बारे में विचार करते हैं, तो हम यह पाते हैं कि विवाह सुसभ्य समाज की नींव है। किसी भी समाज में यौन-सम्बन्धों में वर्जनाओं को बनाए रखने एवं नैतिक मूल्यों का आधार सुदृढ़ बनाने के लिए विवाह को एक कर्त्तव्य के रूप में अनिवार्य माना गया है। विवाह संस्था स्त्री-पुरुष की वासनात्मक पशुवृत्ति को सीमित कर एक सामाजिक सुव्यवस्था प्रदान करती है और इस तरह वह मनुष्य को पशुता की ओर कदम बढ़ाने से रोकती है। मन गतिशील है, वह निरन्तर वासनाओं की पूर्ति की ओर भागता है, उसे सम्यक् दिशा देने हेतु विवाह संस्था अनिवार्य है। इससे मानव - शक्ति, चारित्रिक - पवित्रता एवं सामाजिक - सुव्यवस्था के रचनात्मक कार्य में लग जाती है। इससे मनुष्य श्रेष्ठ मार्ग की ओर अग्रसर होकर पूर्णता की ओर बढ़ता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी जब इस संस्कार को देखते हैं, तो पाते हैं कि वास्तव में यह संस्कार अपने-आप में अत्यन्त महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके माध्यम से ही मनुष्य की काम-वासनाओं को सीमित किया जा सकता है और अनेक सामाजिक विकृतियों से बचा जा सकता
है।
व्रतारोपण - संस्कार का स्वरूप
इस संस्कार में व्यक्ति
जाता है। व्रत का शाब्दिक अर्थ है
व्रतारोपण - संस्कार
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द्वारा विधि-विधानपूर्वक व्रतों का ग्रहण किया नियम या प्रतिज्ञा एवं आरोपण का अर्थ है ग्रहण करना। अतः इस संस्कार के माध्यम से व्यक्ति को व्रतों का ग्रहण कराया जाता है। फलतः उसमें इन व्रतों के पालन से उत्पन्न होने वाले गुणों का आविर्भाव होता है। सभी धर्मों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों को एकमत से स्वीकार किया गया है। सफल जीवन हेतु इन चारों पुरुषार्थों का आचरण अनिवार्य है। इनमें से किसी भी एक पुरुषार्थ की उपेक्षा उचित नहीं है। फिर भी इन चारों पुरुषार्थों में धर्म-पुरुषार्थ प्रमुख हैं और व्यक्ति के जीवन में उसका आचरण अत्यन्त अनिवार्य है, क्योंकि धर्म ही व्यक्ति को जीवन जीने का
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