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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 169 तथा वस्त्राभूषण धारण करवाकर बालक को उपाश्रय में ले जाएं और मण्डलीपूजा, गुरुवंदन आदि कृत्य करें तथा वासक्षेप ग्रहण करें। तत्पश्चात् यतिगुरु एवं गृही गुरु को दान दें तथा नाई को वस्त्र एवं कंकण आदि प्रदान करें। इसके पश्चात् मूल ग्रन्थ में इस संस्कार हेतु आवश्यक सामग्री के सम्बन्ध में निर्देश दिया गया
इस संस्कार के विधि-विधान की विस्तृत जानकारी हेतु मेरे द्वारा किए गए आचारदिनकर के प्रथम खण्ड के ग्यारहवें उदय के अनुवाद को देखा जा सकता है। तुलनात्मक विवेचन -
चूड़ाकरण नामक यह संस्कार तीनों परम्परा में किया जाता है। श्वेताम्बर-परम्परा एवं वैदिक-परम्परा में इस संस्कार को इसी नाम से विवेचित किया गया है, किन्तु दिगम्बर-परम्परा में यह संस्कार केशवाप३३३ या चौलक्रिया के नाम से वर्णित है।
श्वेताम्बर-परम्परा के अर्द्धमागधी आगमग्रन्थ ज्ञाताधर्मकथा एवं राजप्रश्नीयसूत्र में इस संस्कार का उल्लेख मिलता है३३९, किन्तु इस संस्कार सम्बन्धी विधि-विधानों का उल्लेख हमें इन ग्रन्थों में नहीं मिलता है। आचारदिनकर के अनुसार२३५ श्वेताम्बर-परम्परा में यह संस्कार बालक के सूर्यबल एवं चन्द्रबल को देखकर शुभ तिथि, वार एवं नक्षत्र में कुलविधि के अनुसार किया जाता है। इस सम्बन्ध में वर्धमानसूरि ने ज्योतिषशास्त्र सम्बन्धी कुछ विधि-निषेधों का भी वर्णन किया है, जिसका उल्लेख पूर्व में कर चुके हैं। उन्होंने यह बताया है कि किन-किन नक्षत्रों, तिथियों एवं वारों में यह संस्कार करना चाहिए तथा किन-किन नक्षत्रों, तिथियों एवं वारों में तथा किन स्थानों पर यह संस्कार नहीं करना चाहिए। दिगम्बर-परम्परा के प्राचीन साहित्य में ज्योतिषशास्त्र सम्बन्धी कोई उल्लेख हमें देखने को नहीं मिले। उनके मतानुसार यह संस्कार शुभ दिनों में करना चाहिए, परन्तु वे शुभ दिन कौन-कौनसे माने गए हैं, इस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है, किन्तु नाथूलाल जैन शास्त्री ने अपनी पुस्तक जैन संस्कार विधि में इसका उल्लेख किया है। इस संस्कार के लिए उन्होंने वारों में
२३३ आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनुवादक-डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-अड़तीसवाँ, पृ.-२४८, भारतीय ज्ञानपीठ,
सातवाँ संस्करण २०००. ३३४ (अ) ज्ञाताधर्मकथा सू.-१/६७ (ब) राजप्रश्नीय सू.-२८०, सं.-मधुकरमुनि। ३५ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-ग्यारहवाँ, पृ.- १८, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन्
१६२२.
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