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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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आचारदिनकर के अनुसार२४२ गृहस्थ गुरु स्नान किए हुए बालक को आसन पर बैठाकर बृहत्स्नात्रविधि से प्राप्त स्नात्रजल द्वारा शान्तिदेवी के मंत्र से बालक को अभिसिंचित करते हैं। फिर उसके बाद, कुलपरम्परागत नाई से उसके सिर का मुण्डन करवाते हैं। यहाँ वर्धमानसूरि ने यह भी स्पष्ट किया है कि तीनों वर्ण में सिर के मध्य भाग में शिखा रखते हैं तथा शूद्र शिखा न रखकर पूरा ही मुण्डन करवाते हैं। दिगम्बर-परम्परा में बालक को स्नान करवाने का उल्लेख नहीं मिलता है। इस परम्परा में बालक के केशों को गीला करके उस पर पूजा के शेष अक्षत रखते हैं। फिर उसकी चोटी छोड़कर या कुलपद्धति के अनुसार मुण्डन किया जाता है। इस संस्कार की क्रिया में 'पुण्याह' नामक मंगलक्रिया किए जाने का भी निर्देश मिलता है।३४३ वैदिक-परम्परा में पहले बालक को स्नान कराया जाता है। फिर अनधुले वस्त्र में लिपटे हुए उस बालक को गोद में लेकर माता यज्ञीय-अग्नि के पश्चिम में बैठती है तथा पिता उसे पकड़े हुए आहुतियाँ देता है। यज्ञशेष भोजन कर चुकने पर मंत्रोच्चार के साथ बालक के सिर पर शिखा रखकर शेष बालों का मुण्डन किया जाता है। शिखाओं की संख्या कितनी हो, इस सम्बन्ध में कुल की मान्यता को स्थान दिया गया है। हिन्दुओं के लिए शिखा रखना अनिवार्य समझा जाता है। आचारदिनकर में तीनों वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य) में शिखा रखने का तथा शूद्र को शिखा नहीं रखने का विधान है। इस सम्बन्ध में दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा के ग्रन्थों में स्पष्ट निर्देश देखने को नहीं मिलता और न अभिमंत्रित जल से बालक को स्नान कराने का निर्देश मिलता है। तीनों परम्पराओं में चौलकर्म के समय बोले जाने वाले मंत्रों में भी भिन्नता है, जैसे श्वेताम्बर-परम्परा में निम्न मंत्रोच्चार के साथ यह विधि सम्पन्न की जाती
_ “ऊँ अहँ ध्रुवमायुर्बुवमारोग्यं ध्रुवाः श्रियों ध्रुवं कुलं ध्रुवं यशो ध्रुवं तेजो ध्रुवं कर्म ध्रुवा च कुलसन्ततिरस्तु अर्ह ऊँ।।"
२४२ आधारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-ग्यारहवाँ, पृ.-१८, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन्
१६२२. ३४३ आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनुवादक-डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-अड़तीसवाँ, पृ.-२४८, भारतीय ज्ञानपीठ,
सातवाँ संस्करण २०००. २४४ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (पांचवाँ परिच्छेद), पृ.-१२६, चौखम्भा विद्याभवन,
पांचवाँ संस्करण १६६५ २५५ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-ग्यारहवाँ, पृ.-१८, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे सन्
१६२२.
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