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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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संस्कार कौन कराता है -
___ वर्धमानसूरि के अनुसार यह संस्कार जैन ब्राह्मण या क्षुल्लक द्वारा करवाया जाता है। दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थ आदिपुराण के अनुसार यह संस्कार निर्दिष्ट योग्यता वाले द्विजों द्वारा करवाया जाता है। वैदिक-परम्परा में भी सामान्यतः यह संस्कार ब्राह्मणों द्वारा करवाया जाता है।
आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने इस संस्कार की निम्न विधि प्रस्तुत की
विद्यारंभ-संस्कार की विधि -
उपनयन के समान ही शुभदिन एवं शुभलग्न होने पर विद्यारंभ-संस्कार करना चाहिए। इससे पूर्व मूलग्रन्थ में इस संस्कार हेतु उचित नक्षत्रों, वारों एवं तिथियों पर विचार किया गया है। विद्यारंभ-संस्कार हेतु सर्वप्रथम गृहस्थ गुरु उपनीत पुरुष के घर में पौष्टिककर्म करे। तदनन्तर गृहस्थ गुरु योग्य स्थान पर बैठकर अपने वामपार्श्व में शिष्य को बैठाकर उसके दाहिने कान को पूजकर सारस्वतमंत्र सुनाए। तत्पश्चात् गाते- बजाते हुए उसे उपाश्रय में ले जाए और मण्डलीपूजापूर्वक वासक्षेप करवाए। तदनन्तर शिष्य को पाठशाला ले जाए। फिर पाठशाला में शिष्य गुरु के समक्ष बैठकर गुरु की स्तुति करे। तत्पश्चात् गुरु शिष्य को हितशिक्षा देकर तथा उसके द्वारा दी गई दान-दक्षिणा लेकर अपने घर चला जाए। उसके बाद उपाध्याय सर्वप्रथम शिष्य को मातृका-पद का पाठ पढ़ाए। विप्र, क्षत्रिय, वैश्य एवं कारूओं को सर्वप्रथम किसका अध्ययन कराए इसका भी मूलग्रन्थ में उल्लेख हुआ है। तत्पश्चात् साधुओं को चतुर्विध आहार आदि का दान देने का निर्देश दिया गया है। इस विधि की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने हेतु मेरे द्वारा किए गए आचारदिनकर के प्रथम खण्ड के अनुवाद में तेरहवें उदय को देखा जा सकता है। तुलनात्मक विवेचन -
श्वेताम्बर-परम्परा के अर्द्धमागधी आगमग्रन्थ ज्ञाताधर्मकथा, औपपातिक एवं राजप्रश्नीय आदि में इस संस्कार का उल्लेख मिलता है, किन्तु इस संस्कार के विधि-विधानों का उल्लेख हमें वहाँ नहीं मिलता है।
वर्धमानसरि ने इस संस्कार की विधि में सर्वप्रथम इसके मुहूर्त के सम्बन्ध में विचार किया है। उन्होंने यह बताया है कि यह संस्कार कौन से नक्षत्रों,
३८७ (अ) ज्ञाताथर्मकथासूत्र-१/६८, (ब) औपपातिक सू.-१०७, (स) राजप्रश्नीय सू.-२८०, सं.- मधुकरमुनि।
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