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साध्वी मोक्षरला श्री
वर्धमानसरि ने प्राजापत्यविवाह की विधि का विवेचन करते हए इसके शुभ मुहूर्त हेतु ज्योतिष सम्बन्धी निर्देश दिए हैं, जैसे १३ - मूल, अनुराधा, रोहिणी, मघा, मृगशीर्ष, हस्त, रेवती, उत्तरात्रय और स्वाति नक्षत्रों में विवाह करना चाहिए। इस सम्बन्ध में उन्होंने स्वमत के साथ ही ज्योतिषशास्त्र के अन्य विद्वानों का अभिमत भी प्रकट किया है। इस प्रकार आचारदिनकर में विवाह के मुहूर्त सम्बन्धी विस्तृत विवेचन मिलता है। दिगम्बर-परम्परा में भी विवाह शुभदिन, तिथि एवं नक्षत्र में करने का विधान है, परन्तु जिस प्रकार आचारदिनकर में इस विषय को स्पष्ट किया गया है, उस प्रकार का स्पष्टीकरण दिगम्बर-परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में हमें देखने को नहीं मिला, किन्तु पं. नाथूलाल शास्त्री की जैन-संस्कार-विधि में ज्योतिष सम्बन्धी निर्देश अवश्य मिलते हैं। वैदिक-परम्परा में पूर्वकाल में मुहूर्त के विषय में कोई खास ध्यान नहीं देने के कारण गृह्यसूत्रों में मुहूर्त-विषयक विचार अत्यन्त अल्प हैं, किन्तु परवर्ती स्मृतियों, पुराण आदि में विवाह के मुहूर्त सम्बन्धी उल्लेख विस्तार से मिलते हैं।
वर्धमानसूरि ने विवाह-संस्कार के आरंभ में कन्या के वाक्दान की विधि बताई है तथा उससे सम्बन्धित मंत्रों का भी उल्लेख किया है। दिगम्बर-परम्परा में विवाह के पूर्व वाग्दान की विधि का विस्तृत उल्लेख नहीं मिलता है, जबकि वैदिक-परम्परा में वाग्दान के नाम से इसकी विधि का निरूपण किया गया है।४१४ कन्या के वाग्दान के माध्यम से औपचारिक रूप से वर-वधू का विवाह निश्चित कर दिया जाता था। इसके पश्चात् दोनों पक्ष एक-दूसरे को प्रसाधन सामग्री, आभरण आदि वस्तुओं का आदान-प्रदान करते हैं। यह विधि वैदिक-परम्परा में भी की जाती है।
वर्धमानसरि के अनुसार विवाह-लग्न के शोधन हेतु भी एक विशेष प्रकार की विधि की जाती है, जिसमें विवाह के लग्नपत्रक की पूजा भी की जाती है। दिगम्बर-परम्परा एवं वैदिक-परम्परा में इस प्रकार की विधि का उल्लेख नहीं मिलता है। वर्धमानसूरि ने इसे विवाह की विधि का आरंभ माना है। उसके बाद मिट्टी के करवे में जौ बोकर कन्या के घर में मातृका या कुलदेवी एवं षष्ठीमाता की स्थापना की जाती है तथा वर के घर में भी जिनमत के अनुसार मंत्रोच्चारपूर्वक माता एवं कुलकर की स्थापना की जाती है। इनकी विधि के साथ ही वर्धमानसूरि ने अन्य धारणा का भी उल्लेख किया है। दिगम्बर-परम्परा में
आचारदिनकर वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-चौदहवाँ, पृ.-३२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् १६२२ * हिन्दूसंस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-अष्टम, पृ.-२६५, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण
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