________________
वर्थमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
195
अप्रशस्तविवाह - इसमें गान्धर्व एवं राक्षसविवाह को शामिल किया गया है। आसुर और पिशाचविवाह के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं मिलते।
स्वयंवरविवाह - इस विवाह को भी तीन भाग में विभाजित किया गया
इसके अतिरिक्त अन्तर्वर्णविवाह, सगोत्रविवाह, बहुपत्नी या बहुपतिविवाह, पुनर्विवाह एवं बालविवाह के भी उल्लेख मिलते है। सागारधर्मामृत की अनुवादिका ने आर्षग्रन्थ का आलम्बन लेते हुए विवाह के उन्हीं चार प्रकारों का उल्लेख किया है, जिन्हें वर्धमानसूरि ने धर्मविवाह माना हैं। वहाँ विवाह के अन्य प्रकारों का उल्लेख नहीं किया गया है। वैदिक-परम्परा में विवाह के जिन आठ प्रकारों का उल्लेख मिलता है, ये आठ प्रकार वे ही हैं, जिन्हें वर्धमानसूरि ने भी विवेचित किया है, किन्तु स्मृतिकारों ने विवाह के उक्त आठ प्रकारों को भी (१) प्रशस्त तथा (२) अप्रशस्त - ऐसे दो भागों में विभाजित करके प्रथम चार विवाह को प्रशस्त एवं अन्तिम चार विवाह को अप्रशस्तविवाह के रूप में उल्लेखित किया हैं। इसके अतिरिक्त भी वैदिक-परम्परा में विनिमयविवाह, सेवाविवाह आदि भी माने गए हैं। वैदिक-परम्परा में विवाह के लिए कुछ सीमाओं का भी उल्लेख मिलता है, जिनकी आंशिक चर्चा दिगम्बर-परम्परा के साहित्य में भी मिलती है।
वर्धमानसूरि ने प्राजापत्यविवाह को छोड़कर ब्राह्म एवं दैवविवाह की विधि को बहुत संक्षिप्त रूप में विवेचित किया है। आर्षविवाह को जैन-परम्परा में अकृ त्य माना है, तथा इसके लिए जैन वेदों, अर्थात् जैनशास्त्रों में मंत्रों का भी उल्लेख नहीं मिलता है। इस प्रकार आचारदिनकर में हमें ब्राह्म, प्राजापत्य एवं दैवविवाह की विधि का ही वर्णन मिलता है। शेष चार विवाहों की विधि का उल्लेख नहीं मिलता है। दिगम्बर-परम्परा के प्राचीन साहित्यों में भी विवाह की विधि का वर्णन मिलता है, परन्तु वर्धमानसूरि ने जितनी सूक्ष्मता के साथ इसकी सम्पूर्ण विधि का उल्लेख किया है, वैसा विस्तृत उल्लेख दिगम्बर-ग्रन्थों में नहीं है। यद्यपि प. नाथूलाल शास्त्री की पुस्तक जैन-संस्कार-विधि में विवाह की विधि का विस्तृत वर्णन किया गया हैं। १२
'सागारधर्मामृत, अनुवादक - आर्या सुपार्श्वमति जी, अध्याय-द्वितीय, पृ.-१०६, भारत वर्षीय अनेकांत विद्वत
परिषद, तृतीय संस्करण, सन् १६६५ । " हिन्दूसंस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-अष्टम, पृ.-२०३, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण : १६६५ " जैन संस्कार विधि, नाथूलाल जैन शास्त्री, अध्याय-३, प्र.-१६-५३, श्री वीरनिर्वाणग्रन्थ प्रकाशन समिति, गोम्मटगिरी, इन्दौर, पांचवी आवृत्ति : २०००.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org