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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
षष्ठी-संस्कार षष्ठी-संस्कार का स्वरूप -
षष्ठी-संस्कार में बालक के जन्म के छठवें दिन विधि-विधानपूर्वक देवी (षष्ठी माता) की पूजा की जाती है। यह संस्कार जन्म से छठवें दिन विधि-विधानपूर्वक मातृकाओं की पूजा से सम्पन्न होता है। वैसे तो साधारणतः हिन्दू-परम्परा में षष्ठी का अभिप्राय षष्ठीदेवी है, जो कात्यायनी के नाम से दुर्गा का ही एक रूप मानी जाती है तथा जो सोलह विद्या-देवियों में से एक है। श्वेताम्बर-परम्परा में आचारदिनकर के अनुसार षष्ठी-संस्कार का तात्पर्य ब्राह्मी, आदि आठ माताओं सहित अम्बिकादेवी के पूजन से है।५ दिगम्बर-परम्परा में इस सम्बन्ध में कोई विशेष चर्चा नहीं मिलती है। वैदिक-परम्परा में इस नाम का कोई संस्कार नहीं है, यद्यपि गोभिल के अनुसार२६५ - सभी संस्कारों के आरंभ में गणेश के साथ-साथ मातृकापूजन का विधान मिलता है, जो वस्तुतः श्वेताम्बर-परम्परा के षष्ठी-संस्कार के सदृश ही है- ऐसा हम मान सकते हैं।
इस संस्कार को करने का प्रयोजन मुख्यतः क्या रहा होगा ? इस सम्बन्ध में जब हम विचार करते हैं, तो निष्कर्ष रूप में यह पाते हैं कि इस संस्कार को करने का मूलभूत प्रयोजन अनिष्ट का निवारण और अभीष्ट की प्राप्ति रहा होगा, क्योंकि संसार का प्रत्येक व्यक्ति यह चाहता है कि उसे वांछित की प्राप्ति हो, अवांछित स्थिति उससे दूर रहे, जिससे उसके जीवन में किसी प्रकार का कोई विक्षेप, या किसी प्रकार की खेदजनक स्थितियाँ उत्पन्न न हों। नवजात शिशु का मन-मस्तिष्क बहुत कोमल होता है। उसके इस कोमल अंग पर किसी प्रकार की अशुभ शक्तियों का प्रभाव न पड़े, उससे बचने के लिए एवं शिशु के कल्याण की कामना से यह संस्कार किया जाता रहा होगा। आचारदिनकर के अनुसार यह संस्कार शिशु के कल्याण हेतु किया जाता है।२६६
श्वेताम्बर-परम्परा के अर्द्धमागधी आगमग्रन्थों ज्ञाताधर्मकथा, औपपातिक, राजप्रश्नीय एवं कल्पसूत्र में रात्रिजागरण या धर्मजागरण के रूप में इस संस्कार
२६४ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-पांचवाँ, पृ.-१२, निर्णय सागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन्
१६२२ २६५ देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८६, उत्तरप्रदेश हिन्दी
संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०.. २६६ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-पांचवाँ, पृ.-१२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन्
१६२२.
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