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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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सूर्यदर्शन के पश्चात् पुत्रसहित माता गुरु को नमस्कार करती है तथा गुरु उनको आशीर्वाद प्रदान करता है। यह क्रिया करने के पश्चात् गृहस्थ गुरु पुनः सूतिकागृह के समीप के गृह में, जहाँ जिन - प्रतिमा एवं सूर्य-प्रतिमा को स्थापित किया था, वहाँ आकर उनका विधिपूर्वक विसर्जन करे। आचारदिनकर में सूर्यदर्शन - विधि का इस प्रकार उल्लेख मिलता है
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वैदिक - परम्परा में इस संस्कार के आरम्भ में गोभिल के अनुसार गणाधीश (गणेश) के साथ मातृकापूजन करने का विधान मिलता है। इस संस्कार के अन्तर्गत प्रथम बार शिशु को सूतिकागृह से बाहर लाया जाता था तथा सूर्यदर्शन करवाया जाता था। इसके लिए माता बरामदे या आंगन के ऐसे वर्गाकार भाग को, जहाँ से सूर्य दिखाई देता, गोबर और मिट्टी से लीपती, उस पर स्वस्तिक का चिह्न बनाती तथा धान्यकणों को विकीर्ण करती थी। फिर पिता बालक को बाहर लाकर ' तच्चक्षुर्देवहितम् ' मंत्रोच्चार के साथ उसे सूर्यदर्शन कराता। ज्ञातव्य है कि परवर्ती ग्रन्थों में इस संस्कार का बहुत विस्तार किया गया है, जैसे- आठ लोकपाल, सूर्य, चन्द्र, वासुदेव और आकाश की स्तुति करना । इस अवसर पर ब्राह्मण एवं वृद्धजन उसे आशीर्वाद देते हैं - ऐसा भी उल्लेख मिलता है, परन्तु आचारदिनकर के अनुसार जिस मंत्र से आशीर्वाद दिया जाता है, वैदिक - परम्परा का मंत्र उससे भिन्न है।
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दिगम्बर- परम्परा में श्वेताम्बर एवं वैदिक - परम्परा के अनुरूप किसी विशिष्ट प्रकार के विधि-विधान का उल्लेख नहीं मिलता है। प्रियोद्भव नामक संस्कार में तीसरे दिन 'अनन्तज्ञानदर्शी भव' २५२ मंत्रोच्चार के साथ तारों से सुशोभित आकाश के दर्शन कराने का ही उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त कोई विशेष विधि हमें प्राप्त नहीं होती है ।
वर्धमानसूरि के अनुसार श्वेताम्बर - परम्परा में पुनः उसी दिन संध्या के समय सूर्यदर्शन की विधि के समान ही चंद्रोदय के होने पर चंद्र के दर्शन करवाने का निर्देश मिलता है। कदाचित् उस रात्रि में चतुर्दशी या अमावस्या होने के कारण या अन्य किसी कारण से चन्द्रदर्शन न हो पाए, तो पूजन उसी दिन करें,
२५० देखे धर्मशास्त्र का इतिहास ( प्रथम भाग ), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ. १८६, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८०
२५१ हिन्दूसंस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय- पांचवाँ (तृतीय परिच्छेद), पृ. १११, चौखम्बा विद्याभवन, पांचवाँ
संस्करण १६६५ ।
आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु. - डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-चालीसवाँ, पृ. ३०६, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ
संस्करण: २००० |
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