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वर्षमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन संयमित एवं संस्कारित करने का दृष्टिकोण प्रमुख है। इस प्रकार प्रस्तुत संस्कार के सम्बन्ध में आचारदिनकर में प्रतिपादित वर्धमानसूरि का दृष्टिकोण जैनधर्म की निवृत्तिमार्गी परम्परा का संपोषक ही प्रतीत होता है।
पुंसवन-संस्कार पुंसवन-संस्कार का स्वरूप -
गर्भाधान के पश्चात् गर्भ से पुत्र की प्राप्ति हो- इस हेतु पुंसवन नामक संस्कार किया जाता था। पुंसवन शब्द का अभिप्राय - वह कर्म, जिसके अनुष्ठान से 'पुं-पुमान्' (पुरुष) का जन्म हो। सम्भवतः, इस संस्कार को यह नाम इसलिए दिया गया, क्योंकि इसके करने से गर्भ से पुत्रोत्पत्ति होती थी- ऐसी लोक-प्रचलित मान्यता थी (पुमान् प्रसूयते येन तत् पुंसवनमीरितम्-संस्कारप्रकाश६) पुंसवन शब्द अथर्ववेद०० में भी आया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है -“लड़के को जन्म देना।" इस अवसर पर गाए जाने वाले गीतों या ऋचाओं में भी पुत्रजन्म की ही कामना की जाती है।
प्राचीन समय में पुरुष प्रधान संस्कृति होने के कारण पुत्र को जन्म देने वाली माता की प्रशंसा की जाती थी तथा समाज में पुरुष को सम्मानित स्थान प्राप्त था। यह परम्परा उस युग से चली आ रही है, जब युद्ध के लिए पुरुषों की आवश्यकता अधिक होती थी, क्योंकि प्रत्येक युद्ध के बाद पुरुष-संख्या में कमी आ जाती थी। उस कमी को पूरा करने के लिए प्राचीन समय से ही यह पुंसवन-संस्कार सम्बन्धी क्रिया की जाती रही है। यदि सन्तति स्त्री भी हो, तो भी आशा तो यही की जाती थी कि वह आगे चलकर पुरुष-संतान को जन्म देगी। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अब इस संस्कार का इतना अधिक महत्व नहीं रहा है, अतः यह संस्कार प्रायः उपेक्षित है।
___ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर२०१ के अनुसार श्वेताम्बर-परम्परा में यह संस्कार गर्भ के आठ मास व्यतीत हो जाने पर तथा सर्वदोहद (गर्भवती स्त्री की कामनाएँ) पूर्ण होने के पश्चात् गर्भस्थ शिशु के सम्पूर्ण अंग-उपांग पूर्णतः विकसित होने पर शरीर में पूर्णीभाव प्रमोदरूप स्तनों में दूध की उत्पत्ति के सूचकार्थ यह
१६६ देखें - धर्मशास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८७-१८८ उत्तरप्रदेश
हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १९८० २०० देखें - धर्मशास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६ पृ.-१८८ उत्तरप्रदेश हिन्दी
संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८० १०१ "आचारदिनकर", श्री वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-द्वितीय, प्र.-८, निर्णयसागर मुद्रालय बॉम्बे (सन
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