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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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“चिरजीव्या भव”- इस प्रकार आशीर्वाद देकर उस पर अक्षत डालना, मुख और नाक में "नश्यात् कर्ममलं कृत्स्नम् भव" मंत्रोच्चार करते हुए औषधि मिलाकर तैयार किया हुआ घी मात्रा के अनुसार डालना, जरायुपटल एवं नाभि की नाल को मंत्रोच्चारपूर्वक पवित्र जमीन में गाढ़ना, आकाश - दर्शन कराना, आदि अनेक ऐसी क्रियाएँ हैं, जो दिगम्बर - परम्परा में विशेष रूप से की जाती हैं। इसी प्रकार वैदिक - परम्परा में भी कुछ ऐसे विधि-विधानों का उल्लेख मिलता है, जो मात्र वैदिक परम्परा में ही मिलते हैं, जैसे- ब्रह्मपुराण के अनुसार पुत्रजन्म के अवसर पर नांदीश्राद्ध करना, बृहदारण्यकोपनिषद के अनुसार दही एवं घृत का मंत्रों के साथ होम करना, बच्चे के दाहिने कान में “वाक्" शब्द को तीन बार कहना, स्वर्ण-चम्मच या शलाका से बच्चे को दही, मधु एवं घृत चटाना, बच्चे को गुप्त नाम देना, माता को मंत्रों द्वारा सम्बोधित करना, शतपथाब्राह्मण के अनुसार पंचब्राह्मण-स्थापन ( पांच ब्राह्मणों द्वारा पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर तथा ऊपर की दिशाओं से बच्चे के ऊपर सांस लेना) होम करना, मेघाजनन, आदि अनेक ऐसे विधि-विधान हैं, जो वैदिक परम्परा में बताए गए हैं। यहाँ विस्तार के भय से उन सबका विवेचन करना संभव नहीं है। वैदिक परम्परा की भाँति दिगम्बर - परम्परा में भी इस संस्कार के साथ नामकरण करने के उल्लेख मिलते हैं। जिस प्रकार श्वेताम्बर - परम्परा में आचारदिनकर में अशुभ नक्षत्रों, आदि में सन्तानोत्पत्ति से उत्पन्न प्रभावों को दूर करने के लिए शान्तिककर्म एवं पौष्टिककर्म, अर्थात् एक विशेष विधि का निर्देश किया गया है२३५, उसी प्रकार वैदिक- परम्परा में भी अशुभ नक्षत्रों, आदि में सन्तानोत्पत्ति के प्रभावों को दूर करने के लिए शान्तिककर्म, आदि का निर्देश मिलता है। २३६ दिगम्बर - परम्परा में पं. नाथूलाल शास्त्री की जैन-संस्कार-विधि में भी अशुभ नक्षत्रों में सन्तानोत्पत्ति के प्रभावों को दूर करने के लिए मूल - शान्ति का निर्देश दिया गया है।
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इस प्रकार तुलनात्मक अध्ययन करने के पश्चात् हम देखते हैं कि दोनों ही परम्पराओं में यह संस्कार अपनी-अपनी परम्पराओं के अनुसार ही किया
२३२ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय- २, पृ. ६४, चौखम्बा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १६६५। २३३ देखे धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग ), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ. १६२, उत्तरप्रदेश, हिन्दी संस्थान लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८०
२३४ देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास ( प्रथम भाग ), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ. १६२, उत्तरप्रदेश, हिन्दी संस्थान लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८० ।
२३५ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत ( प्रथम विभाग), उदय-तृतीय, पृ. १०, निर्णयसागर मुद्रालय बॉम्बे, सन् १६२२ ।
२३६ देखे धर्मशास्त्र का इतिहास ( प्रथम भाग ), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय - ६, पृ. १६५, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८०
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जैन संस्कार विधि, नाथूलाल जैन शास्त्री, अध्याय- २, पृ. १०, श्री वीरनिर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन समिति, गोम्मटगिरी, इन्दौर, पांचवीं आवृत्तिः २०००
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