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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
इस संस्कार के समान मान सकते हैं। इस संस्कार को दिगम्बर-परम्परा में पुत्रोत्पत्ति के सूचकार्थ नहीं, वरन् गर्भ के पुष्ट एवं उत्तम सन्तान-प्राप्ति की कामना से गर्भाधान के पांचवें माह में किया जाता है। वैदिक-परम्परा में यह संस्कार पुत्रप्राप्ति की कामना से किया जाता है, किन्तु इस परम्परा में यह संस्कार सामान्यतः गर्भाधान से तीसरे मास के पश्चात् करने का विधान है। इस प्रकार इस संस्कार के समय के सम्बन्ध में सबके अपने-अपने मत हैं। आपस्तम्बगृह्यसूत्र, हिरण्यकेशिगृह्यसूत्र एवं भारद्वाजगृह्यसूत्र के मतानुसार यह संस्कार सीमन्तोन्नयन के उपरान्त होता है।२०६ आपस्तम्ब तो इसे गर्भ के लक्षण स्पष्ट हो जाने पर ही करने को कहते हैं। पारस्कर, बैजवाप, जातकर्ण्य, गोभिल, खादिर, आदि भी इसके समय के सम्बन्ध में एकमत नहीं हैं। काठकगृह्यसूत्र गर्भाधान के पांचवें तथा मानवगृह्यसूत्र ने आठवें मास में पुंसवन करने का निर्देश दिया है। इस प्रकार वैदिक- परम्परा में इस संस्कार के उपयुक्त समय के सम्बन्ध में सबकी अलग-अलग अवधारणा है, किन्तु आचारदिनकर का मत मानवगृह्यसूत्र से मिलता
है।
इस संस्कार को किस समय, अर्थात् कौनसे ग्रह, नक्षत्र एवं वारों में करना चाहिए- इसका निर्देशन करते हुए आचारदिनकर में वर्धमानसूरि कहते हैंनक्षत्रों में मूल, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, मृगशीर्ष और श्रवण नक्षत्र एवं वारों में मंगलवार, गुरुवार एवं रविवार पुंसवनकर्म के लिए उचित माने गए हैं। छठवें मास में या आठवें मास में भी यदि उसके स्वामी, अर्थात् पति को अभुक्त पुरुष लग्न हो, तो भी इस संस्कार की क्रिया की जाना इष्ट है। सामान्यतया अशुभ तिथि, नक्षत्र, योगों का त्याग करके गर्भवती स्त्री के पति के चंद्रबल में ही पुंसवन-संस्कार करना चाहिए। दिगम्बर-परम्परा में किया जाने वाला सुप्रीति नामक संस्कार, जिसे हम पुंसवन-संस्कार के समानान्तर ही मान सकते हैं, किस समय, अर्थात् किन नक्षत्रों आदि में किया जाना चाहिए ? उसका उल्लेख प्राचीन साहित्य में तो नहीं मिलता है, परन्तु नाथूलाल शास्त्री की जैन-संस्कार-विधि में ज्योतिष सम्बन्धी उल्लेख अवश्य मिलते हैं, जैसे- सुप्रीति या पुंसवनक्रिया श्रवण, रोहिणी, पुष्य नक्षत्र, रवि, मंगल, गुरु, शुक्रवार, द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी-तिथि में करें।२०६ वैदिक-परम्परा में यह संस्कार किन
२०६ देखें - धर्मशास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८८ उत्तरप्रदेश हिन्दी
संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८०।। २०७ देखें - धर्मशास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८८ उत्तरप्रदेश हिन्दी
संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १९८० २०६ जैन संस्कार विधि, पं. नाथूलाल जैन शास्त्री, अध्याय-२, पृ.-७-८, श्री वीरनिर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन समिति,
गोम्मटगिरी, इन्दौर, पांचवीं आवृत्ति २००० ।
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