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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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उनसे साधुओं को वंदन करवाकर दान दिलवाए। तदनन्तर अपने कुलाचार के अनुसार कुलदेवता आदि की पूजा करे। इसी विधि में वर्धमानसूरि ने आर्यवेद और जैन-ब्राह्मण-वर्ण के उद्भव की कथा भी उल्लेखित की है। स्थानाभाव के कारण उसका उल्लेख हम यहाँ नहीं कर रहे हैं। इसकी विस्तृत जानकारी हेतु मेरे द्वारा किए गए आचारदिनकर के अनुवाद को देखा जा सकता है।
विधि के अन्त में इस संस्कार से सम्बन्धित सामग्रियों का भी उल्लेख
हुआ है।
तुलनात्मक विवेचन -
___गर्भाधान-संस्कार की अवधारणा को लेकर जैनों के दोनों सम्प्रदायों में एवं जैन तथा वैदिक-परम्परा में भी कुछ मतभेद हैं। यह संस्कार कब, किस समय और किस प्रकार किया जाना चाहिए एवं इसकी विधि क्या हो ? इस सम्बन्ध में सभी की अलग-अलग धारणाएँ हैं।
श्वेताम्बर-परम्परा के अर्द्धमागधी आगमग्रन्थ राजप्रश्नीयसूत्र७६ में इस संस्कार का उल्लेख मिलता है, परन्तु इसमें इस संस्कार सम्बन्धी विधि-विधानों का उल्लेख नहीं मिलता है। श्वेताम्बर आचार्य वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर के अनुसार यह संस्कार गर्भधारण के पश्चात् पांचवाँ मास पूर्ण होने पर करने का विधान है, अर्थात गर्भधारण के बाद ही, गर्भ रहने के स्पष्ट लक्षण प्रकट होने पर ही यह संस्कार किया जाता है, जबकि जैनों की दिगम्बर-परम्परा में यह संस्कार मासिकधर्म के चतुर्थ दिन चतुर्थ स्नान से शुद्ध होने पर करने का विधान है। उसमें गर्भधारण करवाने के उद्देश्य से ही यह संस्कार किया जाता है। वैदिक-परम्परा में भी दिगम्बर-परम्परा के अनुसार ही यह संस्कार गर्भधारण करवाने के उद्देश्य से ही किया जाता है, परन्तु इस विधि को किस समय करें, इस सम्बन्ध में भी हिन्दू-परम्परा में अनेक मत हैं, जैसे - शंखायन-गृह्यसूत्र में विवाह की तीन रात के उपरान्त चौथी रात को यह संस्कार करने के लिए कहा गया है। मनु एवं याज्ञवल्क्य'८० के अनुसार मासिक-प्रवाह की अभिव्यक्ति के
७६ राजप्रश्नीय, सं. - मधुकरमुनि, सू. - २८०, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर। 29 आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम खण्ड), उदय - प्रथम, पृ.-५, प्रकाशक - निर्णयसागर मुद्रालय बॉम्बे,
सन् १९२२॥ धर्मशास्त्र का इतिहास, (भाग-प्रथम), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८१, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८०.
मुनस्मृति, सम्पादक - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, अध्याय-तीसरा, श्लोक-४६, संस्कृति संस्थान बरेली (उ.प्र.) १८० याज्ञवल्क्यस्मृति, सम्पादक - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, अध्याय-पहला, श्लोक-७६, संस्कृति संस्थान बरेली (उ.
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