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वर्धमानमरिक्त आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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उल्लेख तो मिलता है, किन्तु जैन-परम्परा की भाँति व्रतारोपण-संस्कार का उल्लेख हमें वहाँ भी नहीं मिलता है। दिगम्बर-परम्परा में यह संस्कार व्रतावरणक्रिया५६ के रूप में किया जाता है। अन्त्यसंस्कार -
___ वर्धमानसूरि के अनुसार जीवनदीप के बुझने की स्थिति में, अर्थात् मृत्यु की सन्निकटता को जानकर यह संस्कार विधि-विधानपूर्वक किया जाता है। जैन-परम्परा में मात्र मृत्योपरान्त की क्रिया को ही इस संस्कार में समाहित नहीं किया गया है, वरन मृत्यु से पूर्व की आराधना-विधि को भी इसमें शामिल किया है, जो जैन-परम्परा की अपनी विशेषता है। वैदिक-परम्परा में यह संस्कार मृत्योपरान्त किया जाता है। जैन-परम्परा की भाँति वैदिक-परम्परा में संलेखना,
आदि करने का विधान भी सामान्यतया देखने को नहीं मिलता है। दिगम्बर-परम्परा में भी श्वेताम्बर-परम्परा के अनुरूप ही यह संस्कार किया जाता है, मात्र अन्तर यह है कि वहाँ अन्त में मुनिदीक्षा देते समय पुरुष को वस्त्र का भी त्याग करना होता है। ब्रह्मचर्यसंस्कार -
मुनिजीवन के षोडश संस्कारों में सर्वप्रथम वर्धमानसूरि ने इस संस्कार का उल्लेख किया है। इस विधि में साधक को एक अवधि-विशेष के लिए ब्रह्मचर्य का ग्रहण करवाया जाता है। दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में हमें पृथक् से इस संस्कार का उल्लेख नहीं मिलता है। क्षुल्लकविधि -
वर्धमानसरि के अनुसार इस संस्कार में साधक को प्रव्रज्या की पूर्व भूमिका में उपस्थित करने हेतु एक अवधि विशेष के लिए पंचमहाव्रत एवं छठवें रात्रिभोजनत्याग-व्रत का उच्चारण करवाया जाता है, किन्तु यह प्रतिज्ञा दो करण एवं तीन योग से करवाई जाती है। दिगम्बर-परम्परा में हमें इस संस्कार का पृथक् से उल्लेख नहीं मिलता है। यद्यपि श्रावक की ग्यारहवीं प्रतिमा में स्थित श्रावक को क्षुल्लक कहा जाता है और इसकी दिनचर्या भी प्रायः मुनिवत् ही
५६ आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु. डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-अड़तीसवाँ, पृ.-२४४, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ
संस्करण २०००. ५७ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-सोलहवाँ, पृ.-६६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२.
आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-अठारहवाँ, पृ.-७३, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. " सागारधर्मामृत, अनु : सुपार्श्वमतिजी, अध्याय-३, पृ.-३६८, भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत्, तृतीय संस्करण
१६२२.
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