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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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अध्याय - ४ आचारदिनकर में वर्णित गृहस्थ के षोडश संस्कार
प्रस्तुत अध्याय में आचारदिनकर में वर्णित गृहस्थ-जीवन के संस्कारों का विवेचन करने के साथ-साथ उनकी दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में निर्दिष्ट संस्कारों के साथ तुलना एवं समीक्षा की गई है। जैसा कि हम पूर्व में भी कह चुके हैं कि तीनों परम्पराओं में संस्कारों की संख्या के सम्बन्ध में अपनी- अपनी अवधारणा है। यहाँ हमने उन सभी अवधारणाओं को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
आचारदिनकर में वर्णित गृहस्थों के षोडश संस्कारों में से क्षीराशन, षष्ठी, शुचिकर्म एवं व्रतारोपण-संस्कार का उल्लेख हमें वैदिक-परम्परा के ग्रन्थों में देखने को नहीं मिलता है। इसी प्रकार आचारदिनकर में वर्णित इन षोडश संस्कारों में से कुछ संस्कारों यथा सूर्य-चन्द्र-दर्शन, क्षीराशन, षष्ठी-पूजन, शुचिकर्म, कर्णवेध, आदि का उल्लेख हमें दिगम्बर-परम्परा के संस्कार सम्बन्धी ग्रन्थ आदिपुराण में भी नहीं मिलता है। इन संस्कारों का उल्लेख हमें आचारदिनकर में ही मिलता है।
आचारदिनकर में वर्णित कुछ संस्कार ऐसे हैं, जिनका हमें वैदिक एवं दिगम्बर-परम्परा में उल्लेख तो मिलता है, किन्तु नाम में भिन्नता होने के कारण उनमें थोड़ा विभेद दिखाई देता है, जैसे- आचारदिनकर में वर्णित सूर्य-चन्द्रदर्शन-संस्कार का उल्लेख हमें वैदिक-परम्परा में निष्क्रमण-संस्कार के रूप में मिलता है, किन्तु इन दोनों ही संस्कारों का प्रयोजन सूर्य-चन्द्र-दर्शन कराना ही है। इसी प्रकार आचारदिनकर में निर्दिष्ट जातकर्म-संस्कार का उल्लेख आदिपुराण में हमें प्रियोद्भवक्रिया के रूप में मिलता है, इत्यादि। वैदिक-परम्परा की अपेक्षा दिगम्बर-परम्परा के आदिपुराण में वर्णित संस्कारों में नामों का परिवर्तन बहुतायत में हुआ है, जिनकी हम यथास्थान चर्चा करेंगे। यहाँ तो हमने इन षोडश संस्कारों की सामान्य चर्चा की है, इनकी विशिष्ट चर्चा हम इस अध्याय के अग्रिम पृष्ठों में करेंगे।
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