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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन । 105 किन्तु दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा ने इसे संस्कार के रूप में नहीं माना है, यद्यपि इन दोनों ही परम्पराओं के ग्रन्थों में इस विषय की आंशिक चर्चा मिलती है। ऋतुचर्याविधि -
इस विधि में वर्धमानसूरि ने साधुओं की ऋतुचर्या का वर्णन कर अलग-अलग ऋतुओं में उनकी आचारविधि का निरूपण किया है।६७ दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में इस विधि को संस्कार के रूप मे उल्लेखित नहीं किया गया है। अंतिम संलेखना-विधि -
मुनि जीवन के अन्तिम क्षणों में किस प्रकार की आराधना करें तथा उसकी क्या विधि है? इसका इस विधि में निरूपण हुआ है। दिगम्बर-परम्परा के आदिपुराण में यह संस्कार योगनिर्वाणसंप्राप्ति-क्रिया के रूप में उल्लेखित हुआ है। वैदिक-परम्परा में हमें इस प्रकार के संस्कार का उल्लेख नहीं मिलता है। प्रतिष्ठाविधि -
___ वर्धमानसूरि ने प्रतिष्ठाविधि को मुनि एवं गृहस्थ- इन दोनों के लिए करने योग्य आठ सामान्य संस्कारों में अन्तर्निहित किया है।६६ दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा के ग्रन्थों में हमें प्रतिष्ठाविधि का तो उल्लेख मिलता है, किन्तु वहाँ इसे संस्कार के रूप में विवेचित नहीं किया गया है। शान्तिककर्म, पौष्टिककर्म एवं बलिविधान -
वर्धमानसूरि ने आचारदिनकर में इन तीनों विधियों को भी संस्कार के रूप में विवेचित किया है। दिगम्बर-परम्परा में शान्तिकविधान एवं बलिविधान (नैवेद्य) देखने को मिलता है। वैदिक-परम्परा में भी तीनों ही विधानों के उल्लेख मिलते हैं, किन्तु दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में इन विधि-विधानों को संस्कार की श्रेणी में नहीं रखा गया है। प्रायश्चित्तविधि -
इस विधि में वर्धमानसूरि ने प्रमादवश किए गए पापों की विशुद्धि के हेतुभूत प्रायश्चित्तविधि का निरूपण किया है। यह विधि भी मुनि एवं गृहस्थ हेतु
१६७ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-इकतीसवाँ, पृ.-१२६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण
१६२२. 'आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु : डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-अड़तीसवाँ, पृ.-२५६, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ
संस्करण २०००. १६६ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, पृ.-३, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२.
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