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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
श्री सप्तोपधान-विधि
यह कृति” मुनि मंगलसागरजी द्वारा संकलित की गई है। इस कृति का संकलन वि.स. १६४७ में हुआ है। यह कृति-संकलन की दृष्टि से अर्वाचीन है, किन्तु इसमें प्रतिपादित उपधान की विधि प्राचीन ग्रन्थों, यथा- विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर, सामाचारीशतक, आदि के आधार पर दी गई है। यह कृति संस्कृ त-गद्य में है। इस प्रकार हमें आचारदिनकर के व्रतारोपण-संस्कार में निहित उपधान-विधि की भाँति ही सप्तोपधान की विधि का उल्लेख मिलता है। जैन-संस्कार, रीति-रिवाज एवं जैनविवाह-विधि -
यह पुस्तक एम.पी.जैन द्वारा वि.स. १६६७ नागपुर मे संकलित की गई है। यह पुस्तक सामग्री एवं आकार की दृष्टि से परम उपयोगी है। इसमें जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जितने विधि-विधान एवं संस्कार सम्पन्न किए जाते हैं, वे सभी जैन-पद्धति के आधार पर प्रस्तुत किए गए हैं।
प्रस्तुत कृति के अन्त में प्रशस्तिरूप छ: श्लोक दिए गए हैं, उससे ज्ञात होता है कि खरतरगच्छीय जिनकीर्तिसूरि के प्रशिष्य उपाध्याय श्री सुखसागर के शिष्य मुनिमंगलसागर द्वारा प्रस्तुत कृति विधिमार्गप्रपादि प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार संकलित की गई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि इस कृति के मुख्य संकलनकर्ता मुनिमंगलसागरजी हैं। मुख्यतः इसमें दो प्रकार के विधि-विधान दिए गए हैं- प्रथम प्रकार के विधि-विधान सोलह संस्कारों से सम्बन्धित हैं एवं दूसरे प्रकार के विधि-विधान में भी हमें आचारदिनकर से सम्बन्धित संस्कारों का उल्लेख मिलता है, यथा- गर्भाधानसंस्कार, न्हावण-विधि (शुचिसंस्कार या जातकर्म), आदि। श्री बृहद्योग-विधि
आचार्य देवेन्द्रसागरसूरिजी द्वारा संपादित यह पुस्तक गुजराती में है।१२ यह भी एक संकलित कृति है। इस कृति में सूत्रों के योगोद्वहन की क्रिया के अतिरिक्त दीक्षाविधि, पदस्थापना-विधि, उपस्थापना-विधि से सम्बन्धित योगों एवं अनुष्ठानों की भी चर्चा है। इस पुस्तक के अन्त में योगचर्या के सिवाय साधु की कालधर्म-विधि एवं उपधान-विधि का भी उल्लेख किया गया है।
" श्री सप्तोपधान विधि, संकलनकर्त्ता-मुनिमंगलसागर, जिनदत्तसूरि ज्ञान भण्डार, सूरत, वि.स. २००६. १२ श्री बृहद्योग-विधि, सं. आचार्य देवेन्द्रसागरसूरि, श्री उमेदखान्ति जैन ज्ञान मंदिर, झींझुवाड़ा, १६८४.
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